Category: स्तंभ

महाकुम्भ में छलका अमृत!

यश मालवीय  महाकुम्भ की बेला है. गंगा यमुना के संगम में लुप्त सरस्वती उजागर हो रही है. अमृत कुम्भ छलक-छलक जाता है. प्रयाग भीग रहा है आध्यात्मिक हवाओं में. आंखों में पृष्ठ दर पृष्ठ खुलते चले जा रहे हैं. पचास…

न कोई कर्म ऊंचा है, न नीचा

कुलपति के. एम. मुनशी

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, “क्या कर्म है और क्या अकर्म, इस विषय में बुद्घिमानों की बुद्घि भी चकरा जाती है. बहुत से लोगों ने इस कठिनाई में कर्म-संन्यास की शरण ली है. संसार से दूर हट जाने में, गुफाओं…

ब्राह्मण कौन है?

कुलपति के. एम. मुनशी

चातुर्वर्ण्य का आदर्श और व्यवहार में उसका अमल, इन दोनों का एक-दूसरे पर पारस्परिक प्रभाव हुआ है; और उन्होंने मिलकर भारत के सामाजिक विकास को दिशा दी है. श्रीकृष्ण का उपदेश  गतिशील था, इसलिए उन्होंने वर्ण का निश्चय जन्म के…

तितिक्षा बंधन-मुक्ति का नाम है

कुलपति के. एम. मुनशी

राग, भय और क्रोध, यह केंद्र-विमुख शक्तियां हैं और चित्त को कर्म से चिपटने न देकर इधर-उधर खींच ले जाती हैं. स्वभाव की जो सहज  शक्तियां हैं, वे केंद्रविमुख हैं. ध्यान इन शक्तियों को सर्जन शक्ति के तनतनाते किसी केंद्र…

पूर्णत्व की ओर

कुलपति के. एम. मुनशी

जाति-व्यवस्था या अन्य कोई कड़ी व्यवस्था, जो किसी भी व्यक्ति को उसके स्वभाव का पूरा विकास करने का अवसर न दे, वह गीता के विपरीत आचरण करती है. ऐसा प्रतिबंध प्राकृतिक क्रम के विपरीत है. ऐसी व्यवस्था व्यक्ति का नाश…