Category: स्तंभ

आधे रास्ते (धारावाहिक आत्मकथा)

समाज-सुधार करने की मेरी लगन छोटी-मोटी प्रवृत्तियों में कुछ-न-कुछ कार्य करती रही. मैंने शिखा छोड़ दी और दूसरों से छुड़वाई. मैंने ‘पीताम्बर’ पहनना छोड़ दिया और अपने मित्रों को भी धोती पहनकर खाना सिखाया. अनेकों में मुक्त-कंठ से नाटक के…

हमारा सरकस

भारतीय सरकस की कहानी सन 1884 से शुरू होती है. उस साल विल्सन नाम का एक अंग्रेज अनेक नटों को लेकर बम्बई आया था. बम्बई के नागरिकों को तलवार-बाजी, तीरंदाजी, घुड़सवारी और रस्सी पर चलने आदि के अद्भुत करतब देखने…

जर्मन विज्ञानः पतन और पुनरुत्थान

एक समय था, जब जर्मनी वैज्ञानिकों का मक्का या मदीना था. विज्ञान की दुनिया में आज जो स्थिति अमरीका की है, वही स्थिति आज से तीस साल पहले जर्मनी की थी. जर्मनी ने संसार को आइन्स्टाइन, प्लैंक, रोंटजेन, ओट्टो हान,…

अमृत का सहोदर ‘रस’ मिल गया

अंत में तय हुआ कि समुद्र मथकर अमृत निकाला जाए. पहले तो वासुकि नाग अड़ गया कि वह अपनी देह की दुर्गति नहीं कराएगा. पर शिष्टमंडल में जृम्भ और सुमाली जैसे क्रूर-कर्मा दैत्य भी थे. अतः कुछ इनके डर से…

जीवन और साहित्य में रस का स्थान

आनंद प्रकाश दीक्षित बाह्य दृश्य जगत और मनुष्य के अदृश्य अंतर्जगत में शेष सृष्टि के साथ उसके सम्बंध-असम्बंध या विरोध को लेकर किये जानेवाले कर्म-व्यापार तथा होनेवाली या की जानेवाली क्रिया-प्रतिक्रिया की समष्टि चेतना का नाम है जीवन. इस द्वंद्वमय…