Category: आवरण कथा

इसलिए व्यंग्य…

♦  ज्ञान चतुर्वेदी   > इस विषय को कई तरह से देखा जा सकता है. क्या हमसे यह कैफियत मांगी जा रही है कि व्यंग्य किसलिए? वैसे इन दिनों बहुत सारा व्यंग्य ऐसा लिखा भी जा रहा है कि पूछने की…

हाहाकार की हकीकत

♦   प्रभु जोशी   > बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में उसके पतन की पटकथा शुरू हो गयी थी और अंतिम दशक तक पहुंचते-पहुंचते तो उसके तमाम शिखर भग्नावेश में बदल गये. क्योंकि, जिन ‘विचारों’ की ऊंचाइयां आकाश नापने लगी थीं,…

सभ्यता का कचरा

♦  राजेंद्र माथुर   > सभ्यता की एक महान समस्या कचरा है. कचरा सर्वत्र है. वह खेत में है और कारखानों में है. जब खेतों में प्राकृतिक खाद पड़ती थी, तब खेत उसे सोख लेते थे. लेकिन आजकल खेत में रासायनिक…

वैज्ञानिक सोच के पक्ष में

♦   जवाहरलाल नेहरू   >  मैं समझता हूं, पुराने ज़माने में ज्ञानी लोग समय समय पर एकत्र होकर अपने अनुभव बांटा करते होंगे. प्रकृति के रहस्यों को जानने-समझने की कोशिश करते होंगे. हो सकता है आज के वैज्ञानिक अथवा उनमें…

इस विनाश को हम स्वयं न्योता दे रहे हैं

 ♦   रामचंद्र मिश्र    > मुद्दत से रोटी कपड़ा मकान, इन्हीं बुनियादी ज़रूरतों पर इंसानी ज़िंदगी मज़े से टिकतीआयी है. बची-खुची ज़रूरतें किस्से-कहानी, भजन-कीर्तन से पूरी होती रही हैं. अब इंसान की ज़िंदगी खुद उसकी पॉकिट में आ गयी…