सुरेश ऋतुपर्ण मेरे प्रिय मित्र यक्ष, अनेक सदियों के बाद यह पत्र भेज रहा हूं. यह नहीं कि इससे पहले लिखने के लिए विचार न किया हो. लेकिन व्यस्ततावश लिख नहीं पाया. तुम उलाहना दे सकते हो कि काहे की…
Category: आवरण कथा
ताकि लेखन साहित्य न बन जाये!
♦ शरद जोशी > श्रे ष्ठ का विशेषण तो दूर, मुझे अपने लिखे पर व्यंग का विशेषण लगाते भी अच्छा नहीं लगता. यह एक खुशफहमी भी हो सकती है कि मेरी रचनाएं व्यंग हैं. दरअसल मेरी कोई पंद्रह बीस रचनाएं…
साहित्य में साहित्य का विरोध
♦ यज्ञ शर्मा > व्यंग्य की तीन प्रमुख किस्में हैं – राजनैतिक, सामाजिक और धार्मिक. राजनैतिक व्यंग्य राजनीति की विसंगतियों के खिलाफ़ लिखा जाता है. सामाजिक, समाज के अन्याय के खिलाफ़ और धार्मिक, धर्म के ढकोसले के विरोध में.…
उज्ज्वल भोर की आंखों का अश्रुपूरित कोर
♦ गौतम सान्याल > मैं सदैव से कहता आया हूं कि व्यंग्य मेरे लिए मात्र विद्रूप का प्रतिभाष्य या जीवन की विसंगतियों का चिह्नीकरण नहीं है, इसी तरह मात्र वह प्रतिघात का माध्यम भी नहीं है. वह मेरे लिए…
मनुष्य के बौद्धिक विकास का शंखनाद
♦ प्रेम जनमेजय > भा रतीय समाज में बाज़ारवाद ने चाहे पिछले दस-पंद्रह वर्ष में अपनी ‘सशक्त’ उपस्थिति दर्ज करायी हो परंतु हिंदी साहित्य में तभी से उपस्थित है जब यह देश परतंत्र था. तब हम अंग्रेज़ी राज्य के तंत्र…