Category: आवरण कथा

मेघदूत से व्हाट्स अप तक वाया पोस्ट कार्ड

– डॉ. पुष्प कुमार शर्मा लीजिये साहब, मैंने अपनी बात का सिर्फ शीर्षक ही बताया कि आप चौंक गये और यह जानने के लिए बैचेन हो गये कि मैं कौन हूं. इससे पहले कि आप कोई अंदाज़ा लगाये मैं खुद ही बता…

खत को तार समझना

रमेश नैयर मिर्ज़ा गालिब ने अपनी उम्र भर की जमापूंजी की घोषणा मात्र दो पंक्तियों में करते हुए लिख दिया था-  चंद तस्वीरे बुतां, चंद हसीनों के खुतूत बाद मरने के मेरे घर से ये सामां निकला ज़ाहिर है उर्दू…

‘पत्रकथा’ के आगाज़ की कहानी

 – धनंजय वर्मा बीसवीं सदी का वह शायद अंतिम वर्ष था. मुम्बई से श्रीमती पुष्पा भारती का एक खत मुझे मिला. वे धर्मवीर भारती के पत्रों का संकलन कर रहीं थी. उनका आग्रह था कि मैं भारती जी के पत्रों की फोटोकॉपियां…

वे दिन! वे खत! वे बातें!

– पुष्पा भारती वेदिन! यानी अपना अतीत! और जब अतीत की बातें याद कीं तो मन नन्हीं ऐलिस जैसा बन गया! नन्हें खरगोश के पीछे वह जिस वंडरलैंड में घुस गयी थी- जैसी अजीबोगरीब तरह-तरह की परिस्थितियों का उसने सामना किया…

साहित्य की स्थाई सम्पत्ति हैं पत्र

 – पं. रामशंकर द्विवेदी ‘मेरी समझ में किसी व्यक्ति की भारी-भरकम साहित्यिक कृति आंधी के समान है, उसके साहित्यिक पत्र उन झोंकों के समान हैं, जो धीरे से आते-जाते रहते हैं और वायु की थोड़ी मात्रा साथ लाने पर भी सांस…