Category: विधाएँ

पीली रिबन  –  दामोदर खड़से

कहानी इस बार डॉ. उषादेवी कोल्हटकर का पत्र आने में काफी विलम्ब हुआ. खाड़ी के युद्ध के कारण पत्र आने में देर हो रही थी. पत्र खोलते ही एक पीली रिबन बाहर निकली. चमकदार रेशमी पीली रिबन. आकर्षक और मोहक.…

मैं राधा  –  उद्भ्रांत

फाग-राग स्मृति के काले बादलों के बीच मोरपांख हंसती है चुपके से बिजली-सी चमक गयी तम में रागिनियां कौंधीं सरगम में अचरज है भरी आंख हंसती है चुपके से प्राण-भवन में वसंत डोला सांसों का पंछी यह बोला ‘खिड़की से…

एक नफरत कथा  –  शंकर पुणतांबेकर

व्यंग्य मराठीभाषी हिंदी व्यंग्यकार शंकर पुणताम्बेकर के निधन से एक समर्थ और महत्त्वपूर्ण रचनाकार हमारे बीच से चला गया. उन्हीं की इस व्यंग्य-रचना से हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं. यह सही है कि ‘हेट्रेड इज ब्लाइंड’, वरना ख…

या इलाही ये माजरा क्या है?  –  सूर्यबाला

व्यंग्य बाहर कार का हॉर्न बजा और कुछ भद्र महिलाएं उतरकर अंदर आती दिखीं. मैंने स्वागत में हाथ जोड़े और पूछा- कहिये कैसे आयीं? उन्होंने लगभग एक साथ उत्तर दिया- हम अपना स्त्राr-विमर्श करवाने आयी हैं. मैं बुरी तरह चकरायी-…

दद्दू मोरे, मैं नहीं पुरुस्कार ठुकरायो  –  लक्ष्मेंद्र चोपड़ा

व्यंग्य अगड़ों की दौड़ में शामिल होने के लिए लालायित उस प्रदेश के पिछड़े कस्बे के आसमान पर सूरज चढ़े देर हो चुकी थी. कविता की भाषा में कहें तो ढेरों काली-भूरी चिड़ियां चहचहा कर थक चुकीं थीं. रही रामदुलारी…