ङ ‘क’ को एक इतिहास एक धर्म एक संस्कृति देकर समय आगे निकल गया ‘ख’ को देने और ‘ख’ के बाद ‘ग’ को देने और ‘ग’ के बाद ‘घ’ को ‘क’ अपने इतिहास धर्म और संस्कृति से चिपककर रह गया…
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अब वह ‘काला पानी’ नहीं है! – डॉ. उषा मंत्री
यात्रा-कथा बचपन में शरारत करने पर अक्सर अम्मा मुझे काले पानी भेजने की धमकी दिया करती थी जिससे मैं सहम जाती थी. मैंने अपने छोटे-से कस्बे के पोखरों और ताल-तलैयों के उजले पानी को देखा था. तब मेरे लिए काला…
अलविदा – निदा फाज़ली
हमारे समय के महत्त्वपूर्ण शायर निदा फाज़ली के आकस्मिक निधन से हिंदी-उर्दू साहित्य का एक अध्याय समाप्त हो गया. उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप उन्हीं की यह कविता- वालिद की व़फात पर तुम्हारी कब्र पर मैं फातिहा पढ़ने नहीं आया मुझे मालूम…
‘मधुशाला’ का पहला सार्वजनिक पाठ बीएचयू में हुआ था – नरेंद्र शर्मा
याद ‘मधुशाला’ का अत्यंत अप्रत्याशित, अनौपचारिक, आकस्मिक और भव्य उद्घाटन समारोह भी मुझे देखने को मिला. वह आजकल का-सा कोई ग्रंथ-विमोचन कार्यक्रम न था. था एक कवि-सम्मेलन. बनारस के हिंदू विश्वविद्यालय में. विश्वविद्यालय के शिवाजी हॉल में. कवि-सम्मेलन के अध्यक्ष…
इरोम शर्मिला – सुदाम राठोड़
मराठी कविता नाबालिग लड़की की मानिंद बलात्कार कर दफ्न किये गये प्रजातंत्र के पार्थिव को उलीचते हुए शवों का लेखा-जोखा मांग रही हो तुम इरोम और यहां यह कमीनी व्यवस्था इंतज़ार कर रही है तुम्हारे शव का. इरोम, उस भवन…