Category: विधाएँ

उसने किसी नेता को नहीं देखा  –  बल्लभ डोभाल

आयाम हिमालय की ऊंची सघन घाटियों में अचानक उससे मुलाकात हो गयी. तब वह अपनी भेड़-बकरियों के साथ एक ऊंचे टीले पर बैठा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था. बातचीत में उसने बताया कि नाम तो छांगाराम है, पर लोग मुझे नेता…

कहानी पर कर्ज़  –   अक्षय जैन

व्यंग्य उस दिन रास्ते में नटवरलाल मिल गये, चेहरे पर सदाबहार रौनक थी. किसी भी सिरे से लगता ही नहीं था कि यह आदमी कभी बूढ़ा भी होगा. बड़े अदब के साथ उन्होंने झुक कर मुझे नमस्कार किया. मैंने कहा-…

वितृष्णा  –  मालती जोशी

कहानी ‘मां पापा लौट आये हैं’ -खाना खाते हुए मैंने सूचना दी. ‘अच्छा’ इनकी ठंडी प्रतिक्रिया थी. ‘चाचा को भी साथ लेते आये हैं.’ ‘किसलिए?’ ‘अकेले छोड़ते नहीं बना होगा. तभी तो तेरही के बाद भी महीना भर तक रुक…

दलित आत्मकथाओं की अंतर्व्यथा  –   मोहनदास नैमिशराय

परिप्रेक्ष्य साठ के दशक में दलित आत्म-कथाओं का आना साहित्य में किसी जलजले से कम नहीं था. पहले यह तूफान महाराष्ट्र में आया फिर हिंदी साहित्य में भी इसे आना ही था. साहित्य में इसे हम परिवर्तन का क्रांतिकारी दौर भी…

कविताएं कई बार  – ललित मंगोत्तरा

डोगरी कविताएं कई बार मन में आती है कविता फुर्र से फिर उड़ जाती है कविता पकड़ने का यत्न करो तो उंगलियों के पोर कविता के आर-पार होकर आपस में मिल जाते हैं पर कविता फिर भी पकड़ में नहीं…