Category: विधाएँ

कहां गयी प्यारी गौरेया  –  चंद्रशेखर के. श्रीनिवासन

कविता इधर–उधर उड़ती–फिरती तुम आती आंगन में, तिरती तुम, पीसा था जो आटा मां ने बिखरे जो गेहूं के दाने, वह सब चुन–चुन खाने आती, मिनटों में तुम सब चुग जाती मां गाती थी मैं था बच्चा सुनता तेरा गाना…

संघर्ष का सौंदर्य

बोधकथा मिट्टी ने मटके से पूछा- ‘मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी, परंतु पानी मुझे बहा ले जाता है और तुम पानी को अपने में समा लेते हो. वह तुम्हें गला भी नहीं पाता, ऐसा क्यों?’ मटका हंसकर बोला- ‘यह…

पूरा मनुष्य बनाने के लिए  –  एच. एन. दस्तूर

शिक्षा (भारतीय विद्या भवन द्वारा संचालित 92 स्कूलों में इस समय 1,85,000 छात्र 6100 अध्यापकों के निर्देशन में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. सन 2014-15 में इन स्कूलों में दसवीं की परीक्षा (सीबीएसई) में उत्तीर्ण होने का प्रतिशत 99.84 था!…

मूर्तियों का प्रजातंत्र  –   शरद जोशी

व्यंग्य वर्ष 2016 स्वर्गीय शरद जोशी की 85वीं सालगिरह का वर्ष है. वे आज होते तो मुस्कराते हुए अवश्य कहते, देखो, मैं अभी भी सार्थक लिख रहा हूं. यह अपने आप में कम महत्त्वपूर्ण नहीं है कि अर्सा पहले जो…

फागुनों की धूप ने  –   हरीश निगम

कविता गुनगुनी बातें लिखीं फिर फागुनों की धूप ने. देह तारों-सी बजी कुछ राग बिखरे तितलियों के फूल के हैं रंग निखरे गंध-सौगातें लिखीं फिर फागुनों की धूप ने मन उड़ा बन-पाखियों-सा नये अम्बर नेह की शहनाइयों के चले मंतर…