Category: विधाएँ

ड्राइंगरूम में मनीप्लांट – शरद जोशी

व्यंग्य   आज मनीप्लांट की डाल गमले में बोयी है. बहुत दिन से कह रही थी कि ड्राइंगरूम में मनीप्लांट लगाना है. आज लग गया है. वह खुश है. हम अपने अगले कमरे को ड्राइंगरूम कहते हैं. एक तखत बिछा…

क्या-क्या गुम नहीं हो रहा है? – गोपाल चतुर्वेदी

व्यंग्य   हमारी मानसिकता भी अजीब है. छोटी चीज़ें खोयें तो हम आसमान सिर पर उठा लेते हैं. वहीं कुछ बड़ा खो जाये तो अहसास तक नहीं होता है. कल ही हमने उसका त्रासद नज़ारा देखा. हमारे पड़ोसी वर्मा जी…

निजी वसंत – चित्रा देसाई

कविता   मेरी दीवार पर फैली बेल उगती दूब का हरापन आंगन में फैली हरसिंगार की खुशबू सब मिलकर मेरे घर में वसंत होने का दावा करने लगते हैं. पर- फैली खुशबू उगती घास और सरसों के पीले फूल मेरे…

ओ वसंत! तुम्हें मनुहारता कचनार – डॉ. श्रीराम परिहार

ललित निबंध मैं जिस महाविद्यालय में पढ़ाता हूं, उसके बगीचे में कचनार का पेड़ है- बूढ़ा और खखराया हुआ. वह ऊपर-ऊपर से सूख गया है, लेकिन छाती के पास अभी भी हरा है. कुछ टहनियां बरसात में सहज भाव से…

आया वसंत (पहली सीढ़ी) फरवरी 2016

                पहली सीढ़ी ।। आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।।   फूलों की क्यारी भरी हुई वह घास वहां फिर हरी हुई. उड़ रही तिललियां चिड़ियां जो वे लगती जैसे तिरी हुई आया वसंत… …