Category: विधाएँ

शम्भू दाज्यू ने मुझे नैचुरल पोएट कहा था —  रमेशचंद्र शाह

संस्मरण शम्भू दाज्यू हमारी दिवंगता बुआ के बेटे हैं, उनके पिता ख्यातनामा डॉक्टर हैं. आगरा के एल.एम.पी. जो अब सेवा-निवृत्ति के उपरांत ज्योलीकोट में बस गये हैं. इतनी जानकारी तो मुझे भी थी; किंतु ज्यों-ज्यों उनके अपने ननिहाल यानी अल्मोड़ा,…

आइए, एक सामूहिक सपना देखें  –  हरिवंश

दृष्टि   जब संसद में प्रवेश किया तो मेरे एक वामपंथी मित्र ने मज़ाक में एक जुमला कहा, जो आज की राजनीति पर उनकी टिप्पणी थी- मेंटेन द प्रेस्टीज ऑफ लेफ्ट. इन्जॉय द प्रिविलेज ऑफ राइट. यानी वामपंथी जिस तरह…

मरुस्थल हमारे मस्तिष्क में – शंकरनकुट्टी पोट्टेकाट

वक्तव्य   मैं वर्ष 1980 का ज्ञानपीठ पुरस्कार एक ऐसे संधि काल में ग्रहण कर रहा हूं जबकि हमारा देश राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के वात्याचक्र से गुज़र रहा है. मैं यह बात विशेषकर इसलिए कह रहा हूं कि कला,…

निर्वासित – सेमुएल बैकेट

नोबेल-कथा   मूल रूप से आयरिश लेखक सेमुएल बैकेट का जन्म 13 अप्रैल, 1906 को हुआ था. इनकी शिक्षा जर्मनी, इंग्लैंड और फ्रांस में हुई. बाद में ये स्थायी रूप से फ्रांस में ही बस गये और एक फ्रांसीसी साहित्यकार…

वसंत आया – रघुवीर सहाय

कविता   जैसे बहन ‘दा’ कहती है ऐसे किसी बंगले के किसी तरु (अशोक?) पर कोइ चिड़िया कुऊकी चलती सड़क के किनारे लाल बजरी पर चुरमुराये पांव तले ऊंचे तरुवर से गिरे बड़े-बड़े पियराये पत्ते कोई छह बजे सुबह जैसे…