Category: व्यंग्य

जंगल में रब्बर शेर

♦  जवाहर चौधरी    > उसने पहले मार्क्स को पढ़ा, इसके बाद गांधी को भी. एक प्रबुद्ध शेर को बाज़ार के जंगल में भूखों मरने के लिए इतना काफी था. धीरे-धीरे उसका वजन घटने लगा, घटना ही था, गिरे पड़े फल…

कुत्तागीरी

♦  विष्णु नागर   > एक कुत्ता था, वह अपनी सिद्धांतवादिता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध था. वह पूंछ वहीं हिलाता था, जहां हिलाना ज़रूरी होता था वरना कुछ भी हो जाए, वह हिलाता ही नहीं था. वह भौंकता भी तभी…

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन… क्यों?

♦  यज्ञ शर्मा >    बचपन कई तरह का होता है. एक बचपन वह होता है जिसमें बच्चे खेलते-कूदते हैं. हंसते हैं, खिलखिलाते हैं, मचलते हैं, रूठते हैं. दूसरा बचपन वह होता है जो बुढ़ापा खराब होने पर याद आता है. जो…

सब्र और सहिष्णुता

    ♦    कन्हैयालाल कपूर            महात्मा बुद्ध से लेकर महात्मा गांधी तक हर दार्शनिक ने सब्र और सहिष्णुता का उपदेश दिया है. उनकी आज्ञा सिर आंखों पर. लेकिन इसका क्या किया जाये कि कभी-कभी ऐसे व्यक्तियों…

रसों का रोमांस

वे नौ थे. सबके सब रसीले. खट्टे, मीठे, चटपटे. जी हां, वे नवरस थे. सबके गुण अलग. स्वभाव अलग. चरित्र अलग. लेकिन पक्के दोस्त. जब भी मूड में आते और साथ मिल जाते, तो साहित्य का स्तर ऊपर उठा देते.…