Category: व्यंग्य

अहिंसा की आग

♦  प्रदिप पंत    > एक बालक ने अपने दादाजी से पूछा, “साधु-संन्यासी-बाबा लोग कहां रहते हैं?” दादाजी बूढ़े हो चुके थे. अपने ज़माने में खोये हुए बोले, “देह पर भभूत लगाये, ज़मीन पर त्रिशूल गाड़े, जटा-जूट धारी वे एकांत-शांत में,…

स्वागत एक परम श्रद्धेय आदरणीय का

♦  लक्ष्मेंद्र चोपड़ा    > परम श्रद्धेय आदरणीय भाई साहब तथा मेरी जात-बिरादरी के लोगों (अगली पंक्ति से कोटों की फरफराहट) मैं भाई साब के साथ तब से हूं जब ये हमारे कस्बे के टपरा महाविद्यालय के मालिक थे और मैं…

कुछ वर्गवाद

♦  कुट्टिचातन   >  वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, मनीषियों और वी. पी. से माल भेजने वालों सभी ने अपने-अपने ढंग से मानव-जाति का वर्गीकरण किया और अपने-अपने स्थान पर, अपनी-अपनी सीमाओं के अंदर, उनके बनाये हुए वर्ग सार्थक भी हो सकते हैं. विज्ञान…

मुर्गियां

♦  शंकर पुणतांबेकर   > अकबर ने कुछ अच्छे लोगों को मुर्गियां बांटीं कि वे उनसे जनता के लिए अंडे पैदा करें. और लोगों ने तो पैदा किये, लेकिन तीन ने यह काम अंजाम नहीं दिया. एक था खानदानी. दूसरा था…

स्नोबाल की खुराफातें

♦  जॉर्ज ऑरवेल   >  कडाके की सर्दियां पड़ीं. तूफानी मौसम अपने साथ ओले और हिमपात लेकर आया. उसके बाद जो कड़ा पाला पड़ा, वह फरवरी तक बना रहा. पशु पवनचक्की को फिर से बनाने में अपनी तरफ से जी जान…