कहानी मानसी अभी बिस्तर पर ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा. उसने सवालिया नज़रों से मोबाइल की ओर देखा जैसे जान लेना चाहती हो कि सुबह–सुबह किसे, क्या तकलीफ है! ‘कॉल बैक’ न करना पड़े इसलिए उसने झट से…
Category: कहानी
वितृष्णा – मालती जोशी
कहानी ‘मां पापा लौट आये हैं’ -खाना खाते हुए मैंने सूचना दी. ‘अच्छा’ इनकी ठंडी प्रतिक्रिया थी. ‘चाचा को भी साथ लेते आये हैं.’ ‘किसलिए?’ ‘अकेले छोड़ते नहीं बना होगा. तभी तो तेरही के बाद भी महीना भर तक रुक…
नीलू – शरणकुमार लिंबाले
दलित-कथा मेरी वेदनाओं से लदी देह पिघलने लगी थी. मेरी देह के दो आंसू बन गये. मेरे पदचाप अग्निशामक वाहक की तरह सिसक रहे थे. मैं बस्ती की दिशा में बढ़ रहा था. आवाज़ की दूरी पर भीमनगर था. इस…
सात स्वरों की स्वर्ग-सृष्टि – डॉ. सुरेशव्रत राय
बंगले का पोर्टिको लांघकर मैं बरामदे में पहुंचा ही था कि सामने के कमरे का परदा हिला, और एक सज्जन ने बाहर आकर मुझसे पूछा- ‘कल आपने ही सिद्धेश्वरीजी से मिलने का समय लिया था न? आइये.’ और बड़ी शिष्टता…
पीली रिबन – दामोदर खड़से
कहानी इस बार डॉ. उषादेवी कोल्हटकर का पत्र आने में काफी विलम्ब हुआ. खाड़ी के युद्ध के कारण पत्र आने में देर हो रही थी. पत्र खोलते ही एक पीली रिबन बाहर निकली. चमकदार रेशमी पीली रिबन. आकर्षक और मोहक.…