आकलन याज्ञवल्क्य ने स्त्राr गार्गी के लगातार सवाल करने से गुस्सा होकर कहा था– ‘इससे आगे कुछ पूछा तो तुम्हारे सिर के टुकड़े हो जायेंगे.’ याज्ञवल्क्य किताबों के देश से बहुत दूर थे. किताबें सवालों से जन्मती हैं. इसलिए किताबों…
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उसने किसी नेता को नहीं देखा – बल्लभ डोभाल
आयाम हिमालय की ऊंची सघन घाटियों में अचानक उससे मुलाकात हो गयी. तब वह अपनी भेड़-बकरियों के साथ एक ऊंचे टीले पर बैठा हुक्का गुड़गुड़ा रहा था. बातचीत में उसने बताया कि नाम तो छांगाराम है, पर लोग मुझे नेता…
दलित आत्मकथाओं की अंतर्व्यथा – मोहनदास नैमिशराय
परिप्रेक्ष्य साठ के दशक में दलित आत्म-कथाओं का आना साहित्य में किसी जलजले से कम नहीं था. पहले यह तूफान महाराष्ट्र में आया फिर हिंदी साहित्य में भी इसे आना ही था. साहित्य में इसे हम परिवर्तन का क्रांतिकारी दौर भी…
असहिष्णुता सबसे बड़ी त्रासदी है – नीरा चण्डोक
विचार वर्ष 1947 में हुआ पंजाब का विभाजन इतिहास में नरसंहार, जातीय हिंसा और विस्थापन के क्रूरतम उदाहरणों में से एक है. पर पंजाब के ही एक छोटे-से हिस्से मलेरकोटला ने विभाजन के खूनी तर्क को नकार दिया था. इसका…
वरना होली तो हो ली… – सुदर्शना द्विवेदी
फाग-राग मौसम में खुमारी अब भी आती है और हवाओं में मस्ती भी, मगर वे रंग, वह उछाव जो वसंत जाते ही फगुनाहट से रोम-रोम सिंचित करने लगता था- वह? क्या वह भी अब है? यह सवाल हाल में पूछे…