वर्ष : 5 | अंक:4 | दिसम्बर 2019 | |
कुलपति उवाच |
03 | उत्सर्ग के लिए तत्पर के.एम. मुनशी |
अध्यक्षीय |
04 | सर्वत्र शांति हो सुरेंद्रलाल जी. मेहता |
पहली सीढ़ी |
11 | प्रार्थना धर्मवीर भारती |
व्यंग्य |
44 | कचरे के जलवे उर्फ स्वच्छता अभियान डॉ. अनंत श्रीमाली |
धारावाहिक उपन्यास |
99 | योगी अरविंद (पांचवीं किस्त) राजेंद्र मोहन भटनागर |
शब्द-सम्पदा |
138 | तारीखों का चक्कर - मिति, बदी, सुदी अजित वडनेरकर |
आवरण कथा |
12 | सभ्यता का 'कचरा' सम्पादकीय |
14 | आशंकाओं,असुरक्षाओं में लिपटा समय विजय कुमार |
21 | देश या एक बहुत बड़ा कचरादान? जितेंद्र भाटिया |
27 | कचरे का अध्यात्म इवान क्लीमा |
29 | कचरा बाज़ार ध्रुव शुक्ल |
36 | देर होती जा रही है रमेश थानवी |
38 | निसर्ग और विज्ञान के द्वंद्व की राजनीति राजेंद्र माथुर |
42 | सभ्यता की पहचान जवाहरलाल नेहरू |
आलेख |
58 | आधुनिकता : जीवन में और समाज में विद्यानिवास मिश्र |
62 | गुरु नानक का 'सच्चा सौदा' रमेश जोशी |
68 | ईसा के संदेश का पुनर्पाठ रोम्यां रोलां |
90 | प्रार्थना करते 'अक्षर' प्रयाग शुक्ल |
92 | बोलिए तो तब... बल्लभ डोभाल |
95 | आनंदप्रकाश दीक्षित को याद करते हुए संजय भारद्वाज |
117 | कौवा! राजशेखर व्यास |
123 | गुप्तोत्तरकाल में मृण्मूर्तियों का अभाव... प्रो. ए.एल. श्रीवास्तव |
128 | ...सबसे बड़े कला संग्रहालय का देश संतोष श्रीवास्तव |
134 | बदलें वे मस्तिष्क-स्राव हम मुनि महेंद्र कुमार |
136 | किताबें |
कथा |
47 | नकचढ़ी भरत चंद्र शर्मा |
71 | दिसम्बर इकहत्तर का एक दिन डॉ. हरिसुमन बिष्ट |
कविताएं |
46 | अभंग मनोज सोनकर |
57 | समझा के बतायेंगे क्या? श्रीपाद भालचंद्र जोशी |
88 | दो कविताएं सूर्यभानु गुप्त |
121 | दो गज़लें उदय प्रतापसिंह |
समाचार |
140 | भवन समाचार |
144 | संस्कृति समाचार |