Category: पिछले अंक

अक्टूबर 2012

गांधी जैसे व्यक्तित्व की चमक समय के साथ धुंधलाती नहीं, समय के पत्थर पर घिस-घिस कर और रंग लाती है. आज यदि गांधी प्रासंगिक हैं तो इसलिए कि उन्होंने अपने सत्य के प्रयोगों  से समय को एक दिशा दी थी…

सितम्बर 2012

भाषा के विकास के लिए ज़रूरी भी है यह. लेकिन जिस तरह अंग्रेज़ी हमारी भाषाओं पर हावी होती जा रही है या कहना चाहिए उसे हावी किया जा रहा है, वह सिर्फ़ चौंकाने वाली बात नहीं, चिंता की बात भी…

अगस्त 2012

आज़ादी की लड़ाई के दौरान भारतमाता की जय का नारा लगाने वाले युवाओं से जवाहरलाल नेहरू ने एक बार पूछा था, यह भारतमाता है क्या? फिर स्वयं ही इसका उत्तर भी दिया था उन्होंने- इस देश की करोड़ों-करोड़ें जनता ही…

जुलाई 2012

संस्कृति क्या है? इस प्रश्न का सीधा-सा उत्तर हैः वह सब जो मानवीय जीवन को उच्चतर मूल्यों-आदर्शों से जोड़ता है, उसे संस्कारित करता है, वही सब संस्कृति को भी परिभाषित करता है. संकीर्णताओं से उबरकर एक व्यापक फलक पर जीवन…

जून 2012

कहते हैं कि ‘गंगा’ शब्द का एक अर्थ ‘नदी’ भी होता है. मतलब यह कि सारी नदियां गंगा हैं – जीवनदायनी हैं, जीवन-रक्षक हैं. जब हम गंगा को बचाने की बात करते हैं तो वस्तुतः हम सब नदियों को बचाकर…