बड़े दिन की छुटिट्यों के बाद पहली जनवरी 1911 को मैं बम्बई पहुंचा. उसी रात मैंने लिखा- “मैं आया हूं सही, पर ऐसे मानो शाप पाकर आया होऊं. प्रेरणा देने वाला कोई नहीं है, इसलिए मेरी दशा दयनीय है. मुझे हिम्मत…
बड़े दिन की छुटिट्यों के बाद पहली जनवरी 1911 को मैं बम्बई पहुंचा. उसी रात मैंने लिखा- “मैं आया हूं सही, पर ऐसे मानो शाप पाकर आया होऊं. प्रेरणा देने वाला कोई नहीं है, इसलिए मेरी दशा दयनीय है. मुझे हिम्मत…