♦ जगन्नाथ प्रसाद मिश्र > मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो हंस सकता है. अन्य प्राणी हंस नहीं सकते. हास्य द्वारा आनंद-प्रकाश की क्षमता मनुष्य के प्रति विधाता की एक बहुत बड़ी देन है. इसीसे सृष्टि के आदिकाल से…
Category: चर्चित स्तंभ
जीवन का अधिकार, कर्तव्य
।।आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।। ♦ पाल इल्यार (फ्रांसीसी कवि) > और कुछ नहीं होगा न भुनभुनाता हुआ कीड़ा, न कांपती हुई पत्ती न कोई गुर्राता हुआ पशु, बदन चाटता हुआ पशु न कुछ गर्म, न कुछ…
‘आराम’ किस भाषा के नसीब में?
♦ आनंद गहलोत > हिंदी के महान कोशकारों के ज्ञान का आदर करते हुए इसे स्वीकार करने में हमें संकोच नहीं होना चाहिए कि आराम के हिंदी में मौजूदा सुख-चैन अर्थ की प्रेरणा हमें संस्कृत के बजाय फ़ारसी से अधिक…
नैतिक मूल्य मनुष्यता की पहचान हैं
♦ सोनी वार्ष्णेय > असंतोष, अलगाव, उपद्रव, आंदोलन, असमानता, असामंजस्य, अराजकता, आदर्श विहीनता, अन्याय, अत्याचार, अपमान, असफलता अवसाद, अस्थिरता, अनिश्चितता, संघर्ष, हिंसा… यही सब घेरे हुए है आज हमारे जीवन को. व्यक्ति में एवं समाज में साम्प्रदायिकता, जातीयता, भाषावाद, क्षेत्रीयतावाद,…
धर्म का मतलब
♦ विवेकानंद > अपने सहयोगी स्वामी ब्रह्मानंद को लिखे एक पत्र में स्वामी विवेकानंद ने उन्हें धर्म के वास्तविक रूप का सार समझाया था. उस पत्र के कुछ अंश. अल्मोड़ा 9 जुलाई, 1897 बहरमपुर में जैसा काम हो रहा है…