दिसम्बर 2011

Dec 2011 Cover 1-4 FNL‘बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि ले’ का दर्शन है यह. यह बात अच्छी भी लगती है और उपयुक्त भी. पर फिर यह सवाल भी मन में आता है कि बीती त्रासदियों को भुलाकर नयी शुरुआत वाली बात तो ठीक है, क्या इसलिए उन्हें याद रखना ज़रूरी नहीं कि उनसे कुछ सीख सकें? सवाल त्रासदियों का ही नहीं है, बहुत कुछ अच्छा भी घटता है जीवन में, जो आगे चलने की प्रेरणा बन जाता है. उसे याद रखने का मतलब होता है एक प्रेरणा के साथ जीना. मतलब यह कि जीवन के उतार-चढ़ाव, दोनों कुछ सिखाकर जाते हैं और दोनों को याद रखकर हम स्वयं को आने वाले कल के लिए बेहतर रूप से तैयार कर सकते हैं.

शब्द-यात्रा

आपत्ति की उत्पत्ति
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

आखिरी सांस तक
वूडी गाथरी

आवरण-कथा

सम्पादकीय
बीतते समय से गुज़रते हुए
कैलाशचंद्र पंत
टूटेगा, कुछ तो ज़रूर टूटेगा…
मधुसूदन आनंद
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता
गोपाल चतुर्वेदी

मेरी पहली कहानी

रिश्ते
परितोष चक्रवर्ती

आलेख

आओ, बहना शुरू करें, छोटे-छोटे गड्ढों को भरते चलें
अनुपम मिश्र
आपके हित में आपका मरना ज़रूरी है
प्रभु जोशी
जापानी कन्या के नाम पत्र
नारायण भाई देसाई
एक आधुनिक कल्पक
एस. वागेश्री
तीस करोड़ पेड़ उनके स्मारक हैं!
डॉ. प्रदीप शर्मा ‘स्नेही’
ओलूची की मां को मिला नोबेल
सरबजीत
अरुणाचल प्रदेश और मेघालय का राज्य पुष्प – लेडी स्लिपर आर्किड
डॉ. परशुराम शुक्ल
बस इक ये रीढ़ की हड्डी न टूटे…
पुष्पा भारती
त्रिजटा का स्वप्न
मनोज कुमार श्रीवास्तव
भारत का प्रथम सत्याग्रह
ओंकारश्री
वाणी का विवेक
आचार्य महाश्रमण
कैलेंडर की यात्रा-कथा
योगेशचंद्र शर्मा
किताबें

व्यंग्य

एक अंतिम यात्रा की मोबीकास्टिंग
विनोदशंकर शुक्ल

धारावाहिक उपन्यास

कंथा (उन्नीसवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कविताएं

शाम के वक्त कभी घर में अकेले न रहो
सूर्यभानु गुप्त
नवगीत
यश मालवीय
दो कविताएं
खेया सरकार
चार कविताएं
चंद्रशेखर कम्बार

कहानियां

भिखारियों का राजा
ज्ञानदेव मुकेश
बिदाई समारोह
कृष्णा अग्निहोत्री
अपना आकाश
लता करंदीकर

समाचार

संस्कृति समाचार
भवन समाचार