मार्च  2011

March 2011 Cover-fnlकहते हैं यह त्यौहार पिछली कटुताओं को भुलाकर रिश्तों के नये समीकरण बनाने का होता है. होली में किसी के चेहरे पर काला रंग लगाकर हम चेहरे पर कालिख नहीं पोतते, रिश्तों के रंगों को नये अर्थ देते हैं. यह सबकुछ वैसा ही है जैसा व्यंग्यकार किया करते हैं. जो वे कहते हैं, उसका वही अर्थ नहीं होता जो शब्दों से निकलता है. व्यंग्य की महत्ता शब्दों के पीछे छिपे अर्थों को उजागर करने में है. च्यूंटी तो काटता है व्यंग्यकार, पर उसका उद्देश्य पीड़ा देना नहीं होता, कुछ समझाना होता है. यही समझ व्यंग्य को महत्त्वपूर्ण एवं सार्थक बनाती है. हंसते-हंसते कोई कड़वी गोली खिला देना और कड़वाहट का अहसास भी न होने देना व्यंग्य की विशेषता होती है. इस बार होली के उपलक्ष्य में कुछ ऐसी ही गोलियां हम लाये हैं अपने पाठकों के लिए.

शब्द-यात्रा

दक्षिणा, फीस, पारिश्रमिक
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

फिर क्यों
शमशेर

आवरण-कथा

रंगों का मौसम मुबारक हो
सम्पादकीय
क्या खाक हंसोगे…
गोपालप्रसाद व्यास
नीत्शे ने कहा था, हंसता हूं ताकि रोने न लगूं
ओशो

मेरी पहली कहानी

शंख और सीपियां
संतोष श्रीवास्तव

व्यंग्य भारती

हंड्रेड पर्सेंट पेस्तन काका
पु.ल. देशपांडे
भाग के छिलके
शेखर चट्टोपाध्याय
इक्कीसवीं शताब्दी के पति-पत्नी
इब्ने इंशा
दमयंती का दशहरा
टी. सुनंदम्मा
बुजुर्ग
ज्योतींद्र दवे

व्यंग्य

पहिला रिपोर्टर
कुट्टीचातन
निवेदन 50 प्रतिशत रेवड़ियों का
यज्ञ शर्मा
बड़े आदमियों की बातें
सूर्यबाला
स्वप्न-साक्षात्कार डॉ. राममनोहर लोहिया से
विनोदशंकर शुक्ल
अंधेर नगरी में महंगाई
शशिकांत सिंह ‘शशि’
किस्सा अज्ञेय की दो कविताओं का
चांद सिकुड़ रहा है
सुधा ‘अनुपम’
अंततः सहमति
प्रदीप पंत

त्री विमर्श

रहोगी तुम वही
सुधा अरोड़ा
…उससे ज्यादा कटती हैं औरतें
सुचेता मिश्र
प्रिय तस्लीमा नसरीन…

उपन्यास अंश

कंथा (दसवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

आलेख

पानी पर तैरती महफिल
डॉ. रामनारायण सिंह ‘मधुर’
दीवार के उधर वाला पागलखाना
राजशेखर व्यास
मिजोरम का राज्य-पुष्प – वांडा
डॉ. परशुराम शुक्ल
किताबें

कविताएं

बड़े मज़े की बात
रवींद्रनाथ ठाकुर
चल भाई गंगाराम भजन कर
दुष्यंत कुमार
दस व्यंग्य दोहे
हरि मृदुल
दो व्यंग्य कविताएं
नागार्जुन
बादल उड़े गुलाल के
दिनेश शुक्ल
पढ़ो, समझो और मत मानो
सुभाष काबरा

समाचार

संस्कृति-समाचार
भवन-समाचार

आवरण-चित्र

अशोक भौमिक