जुलाई 2013

July 2013 Cover - 1-4 FNLसाहित्य क्यों में ही साहित्य क्या है, का उत्तर छिपा है. इस उत्तर को तलाशने की आवश्यकता इसलिए है कि हम अपने रचने की आवश्यकता को समझ सकें. किसी भी रचनाकार से, विशेषकर कवियों से, जब यह पूछा जाता है कि वह क्यों लिखता है, तो अक्सर जवाब मिलता है, जब भीतर कुछ घुमड़ता है, कहे बिना रहा नहीं जाता, तब मैं लिखता हूं. यह उत्तर गलत नहीं है, पर पूरा भी नहीं है. कुछ कहने की व्याकुलता-विवशता के साथ ही कहकर कुछ पाने का भाव भी जुड़ा है. आखिर क्या पाना चाहता है रचनाकार? यही प्रश्न साहित्य की सबके हित वाली परिभाषा तक ले जाता है. लेकिन, कोई आवश्यक नहीं कि कोई कविता या कहानी या उपन्यास या आलेख यह सोचकर ही लिखा जाये कि उससे कुछ पाना है. हां, यह पाना अथवा देना, कहीं न कहीं लेखन से जुड़ा हमेशा रहता है. तुलसी ने यह कहना ज़रूरी समझा था कि वे रामचरित मानस की रचना स्वांतः सुखाय कर रहे हैं, पर उनके इस सुख में किसी न किसी रूप में पाठक का सुख भी जुड़ा है. वस्तुतः यह ‘सुख’ रचना की सार्थकता की एक कसौटी है. इसीलिए यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण बन जाता है कि रचनाकार क्यों लिखता है?

 

कुलपति उवाच

आर्य संस्कृति की सजीव वाणी
के. एम. मुनशी

शब्द-यात्रा

‘तू’ ही ‘तू’ है
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

पूरे दिन मैं जागरूक
लुइस कने

आवरण-कथा

सम्पादकीय
काश, कभी वैसी कविता लिख पाऊं
विजय कुमार
अपने आप से संघर्ष है यह
विष्णु नागर
साहित्य किसलिए… किसके लिए
गंगा प्रसाद विमल
मेरी कलम की दुखती रग
सूर्यबाला
अंतिम निकष मनुष्य होना चाहिए
डॉ. शरणकुमार लिंबाले
सपना ही रचना को रचता है
काशीनाथ सिंह
साक्षर से निरक्षर बनने के लिए लिखता हूं
अनिल जोशी
मेरे लेखन का सम्बल
धर्मवीर भारती
ज़रा हाशिए को भी रखना नज़र में
कुंवर नारायण
क्योंकि मुझे कुछ कहना होता है
मंटो

मेरी पहली कहानी

ज़रा-सी बात
नवनीत मिश्र

महाभारत जारी है  

संसार : भयावह जंगल
प्रभाकर श्रोत्रिय

धारावाहिक आत्मकथा

आधे रास्ते (छठी किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी

व्यंग्य

ज़िंदगी के फालतू शब्दों का उपयोग  
यज्ञ शर्मा
सागर मंथन चालू है 
शशिकांत सिंह ‘शशि’

आलेख

रचनात्मकता की प्रेरणा बने साहित्य
डॉ. राजेंद्र प्रसाद
मिट्टी के भी होते हैं अलग…
हृदयेश
जब निराला कवि सम्मेलन में आये
विष्णु प्रभाकर
उत्तरांचल-सिक्किम का राज्यवृक्ष
डॉ. परशुराम शुक्ल
गांधीजी मेरे साथ खेले थोड़े ही थे…
शेखर सेन
दुख का अर्थ है विवेक का छिप जाना
श्री श्री रविशंकर
इंसान होने की बुनियादी शर्त…
बॉब गेल्डोफ
बागे निशात का गुल महजूर
बलराज साहनी
एक टांग के सहारे छू लिया एवरेस्ट 
अरुणिमा सिन्हा
मंटो की जीवन-कथा लिखते हुए
नरेंद्र मोहन
किताबें

कहानी

अरण्य में फिर 
राज कमल
तोता      
रवींद्रनाथ ठाकुर

कविता

सूखा : पांच शब्दचित्र
कैलाश सेंगर
किताबें        
फखर जमान
प्रेम जीवन से…    
सुभाष रस्तोगी
दो गीत        
राजनारायण चौधरी

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