फरवरी 2013

Feb 2013 Cover - fnlगंगा, यमुना तथा सरस्वती का संगम मात्र तीन नदियों का संगम नहीं है, यह आस्था श्रद्धा और आदर्शों-मूल्यों का भी संगम है. महाकुम्भ इस संगम को आकार भी देता है और सार्थकता भी. पता नहीं वह कैसा विश्वास है जो श्रद्धालुओं को हर कुम्भ के अवसर पर यहां खींचे ले आता है. लेकिन सदियों का सच है यह कि प्रयाग या नाशिक या हरिद्वार या उज्जैन के कुम्भ पर्व के अवसर पर लाखों नहीं, करोड़ों की संख्या में देश के हर कोने से ढेर सारी आस्थाओं के साथ यात्री एकत्र होते हैं और परितृप्ति का एक अनोखा अहसास लेकर लौटते हैं. आस्थाओं का मेला है यह कुम्भ.

 

कुलपति उवाच

सत्य व्यक्तिगत वस्तु है
के. एम. मुनशी

शब्द-यात्रा

चोला की कमीज़ और कुरता
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

सृजन का शब्द
जाँ स्टार अंटरमेयेर

आवरण-कथा

सम्पादकीय
महाकुम्भ में छलका अमृत!
यश मालवीय
कुम्भ : जन, जल और आस्था
पं. विद्यानिवास मिश्र
सब अमृत-पुत्र हैं
कैलाश वाजपेयी
आस्थाओं का अंतहीन सिलसिला
उमाकांत मालवीय
वह कुम्भ, वह पुलिस और वह मालवीयजी!
जवाहरलाल नेहरू
सुलगती टहनी
निर्मल वर्मा 

मेरी पहली कहानी

कही-अनकही
वल्लभ डोभाल

महाभारत जारी है        

वत्सलता
प्रभाकर श्रोत्रिय

व्यंग्य

आना, ना आना बसंत का    
राजेंद्र निशेश 

आलेख

‘अंतिम’ प्रवचन
मोरारी बापू
‘तालीम हमारा हक है’
अंजलि नरोन्हा
जब मालवीयजी ने भारतेंदु हरिश्चंद्र को गुरु बनाया!
शिवनारायण
उत्तर प्रदेश का राज्यवृक्ष : अशोक
डॉ. परशुराम शुक्ल
फूल आये हैं कनेरों में
डॉ. बुद्धिनाथ मिश्र
रामप्पा और हज़ार खंभों वाला देवालय
रमेशचंद्र शाह
मैं अपनी जेब खुद ही काटता हूं…
मण्टो
छोटे से जीवन वाला बड़ा गणितज्ञ
मुहम्मद ख़लील
लोक संस्कृति में विज्ञान-चेतना
विजयदत्त श्रीधर
ऐसे छपा था ‘पथेर पांचाली’
विमल बोस
किताबें 

कहानी

उजास
हिमांशु जोशी
बयान ( बोधकथा)
श्रीकांत कुलश्रेष्ठ

धारावाहिक आत्मकथा

आधे रास्ते (पहली किस्त)
कन्हैयालाल माणिकलाल मुनशी

कविताएं    

दो कविताएं
त्रिलोचन
तन दधीचि रही, मन तथागत रही
कैलाश गौतम
ठंड की कविताएं
अशोक विश्वकर्मा
फ़रवरी मन हो गया  
यश मालवीय
अबकी शाखों पर बसंत तुम
जयकृष्ण राय तुषार

 समाचार

भवन समाचार
संस्कृति समाचार