जीवन का अधिकार, कर्तव्य

।।आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।।

♦   पाल इल्यार (फ्रांसीसी कवि)   >

 

और कुछ नहीं होगा
न भुनभुनाता हुआ कीड़ा, न कांपती हुई पत्ती
न कोई गुर्राता हुआ पशु, बदन चाटता हुआ पशु
न कुछ गर्म, न कुछ कुसुमित
न कुछ तुषाराच्छादित, न उज्ज्वल, न सुगंधित
न मधुमाती फूल से संचारित कोई छाया
न बर्फ का फर ओढ़े कोई वृक्ष
न चुम्बन से रंजित कपोल
न कोई संतुलित पंख, हवा को चीरता पंख
न कोमल मांसल खंड, न संगीत भरी बांह
न कुछ मूल्यहीन, न विजय योग्य, न विनाश योग्य
न बिखरने वाला, न जुड़ने वाला
अच्छे के लिए, बड़े के लिए
न रात, प्रेम या विश्राम की भुजाओं में सोई हुई
न एक आवाज़ आश्वासन की, न भावाकुल भूख
न कोई निरावृत्त उरोज, न फैली हुई हथेली
न अतृप्त संतोष
न कुछ ठोस, न पारदर्शी, न भारी, न हल्का
न नश्वर, न शाश्वत
पर मनुष्य होगा
कोई भी मनुष्य
मैं या और कोई
यदि नहीं होगा, तो फिर कुछ नहीं होगा.

 – 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *