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हम भगतन के – नवनीत हिंदी http://www.navneethindi.com समय... साहित्य... संस्कृति... Tue, 24 Feb 2015 12:13:00 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8 http://www.navneethindi.com/wp-content/uploads/2022/05/cropped-navneet-logo1-32x32.png हम भगतन के – नवनीत हिंदी http://www.navneethindi.com 32 32 दिसम्बर 2014 http://www.navneethindi.com/?p=1386 http://www.navneethindi.com/?p=1386#respond Tue, 24 Feb 2015 11:52:18 +0000 http://www.navneethindi.com/?p=1386 Read more →

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COVER - 1 (FNL)

बीतते वर्ष में बहुत कुछ ऐसा हुआ होता है जो पीड़ा देता है, उसे याद करके दुखी होना स्वाभाविक है. लेकिन दुखी होना मात्र तो पीड़ा से नहीं उबारेगा. ज़रूरी है हम उस दुख से उबरें जो अनचाहे अथवा अप्रिय कारणों से हमारे जीवन में विषाद का ज़हर घोल गया है. जो भी अप्रिय हुआ है, वह हमारे कारण भी हो सकता है और हमारे बावजूद भी. वह हो चुका. हम उसे अनहुआ नहीं कर सकते. हां, यह अवश्य सोच सकते हैं कि काश, वह नहीं हुआ होता. पर इससे बात नहीं बनती. बात बनाने से बनती है. बात बनाने के लिए कोशिश करनी प़ड़ती है. आगे की सुधि लेने वाला सोच इसी कोशिश की शुरुआत हो सकता है. बीत गये या बीत रहे पर आंसू बहाना पराजय की मानसिकता है. पराजित होना गलत नहीं है, पराजय की मानसिकता के साथ जीना गलत है. हार-जीत जीवन के दो पहलू हैं. दोनों को स्वीकार करके ही जीवन जिया जा सकता है. लेकिन पराजय की मानसिकता एक हताशा को जन्म देती है. गिरकर उठने, और उठकर आगे बढ़नेवाला सोच मनुष्य को इस हताशा से उबारता है. यही उबरना आगे की सुध लेने का मतलब है. सूरज डूब रहा है, यह सच है, पर सूरज कल फिर उगेगा, यह उससे भी बड़ा सच है. क्योंकि इस सच के पीछे उम्मीदों का संसार है. बेहतर भविष्य की उम्मीदें. ज़रूरत इन उम्मीदों को पंख देने की है ताकि वे सफलताओं के आकाश नाप सकें.

कुलपति उवाच

योगी बनने की दिशा
के.एम. मुनशी

शब्द यात्रा

दूर की दूरदर्शिता (भाग-2)
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

ज्ञान का उल्लास
नाज़िम हिकमत

आवरण-कथा

सूरज कल फिर उगेगा
सम्पादकीय
सम्भावाओं का भविष्य
रमेश दवे
ताकि भविष्य का वातावरण…
गंगा प्रसाद विमल
भविष्य दृष्टि की मंगल कामनाएं
डॉ. श्यामसुंदर दुबे
बीती ताहि बिसारि दे
आचार्य तुलसी

धारावाहिक आत्मकथा

सीधी चढ़ान (तेइसवीं किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी

नोबेल कथा

वह असफलताओं से खेलता रहा
जॉन गाल्सवर्दी

व्यंग्य

हम क्यों बीती ताहि बिसारें
गोपाल चतुर्वेदी

आलेख

‘लेखक को देवता मत समझिए’
महाश्वेता देवी
डायरी एक ताबूत
अनिरुद्ध उमट
एक वरेण्य पागलपन
विजय बहादुर सिंह
अशोक वाटिका, अग्नि परीक्षा और रावण की मृत देह
डॉ. श्रीराम परिहार
पांडिचेरी का राज्यवृक्ष – बेल
डॉ. परशुराम शुक्ल
अपनी कैद से बाहर निकलो
दलाई लामा
मिट्टी को चखते थे वे कलाकार
निर्मला डोसी
खुशबू की शायरा परवीन शाकिर
कुलदीप तलवार
फेनी के इस पार
सांवरमल सांगानेरिया
एक डाल पर तोता बोले…
डॉ. किशोर पंवार
पहचान मिटाती फेसबुक
चंद्रशेखर धर्माधिकारी
मोदकैर्माम् ताडय
डॉ. ए. एल. श्रीवास्तव
मोहनदास की अंक तालिका
रामचंद्र गुहा
किताबें

कहानियां

चेयरमैन (उपन्यास अंश)
दामोदर खड़से
ख्याला जे महसूस किता
अमर स्नेह
हम भगतन के, भगत हमारे\
मालती जोशी

कविताएं

दो ग़ज़लें
कुमार शिव
तीन कविताएं
सुशांत सुप्रिय
तन मन का…
प्रकाश दुबे
कविताएं
अहद प्रकाश

समाचार

भवन समाचार
संस्कृति समाचार

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