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वतन की खुशबू – नवनीत हिंदी http://www.navneethindi.com समय... साहित्य... संस्कृति... Fri, 23 Sep 2016 11:14:24 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8.1 http://www.navneethindi.com/wp-content/uploads/2022/05/cropped-navneet-logo1-32x32.png वतन की खुशबू – नवनीत हिंदी http://www.navneethindi.com 32 32 जून 2012 http://www.navneethindi.com/?p=731 Wed, 17 Sep 2014 08:14:06 +0000 http://www.navneethindi.com/?p=731 Read more →

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June 2012 Cover 1 & 4 FNLकहते हैं कि ‘गंगा’ शब्द का एक अर्थ ‘नदी’ भी होता है. मतलब यह कि सारी नदियां गंगा हैं – जीवनदायनी हैं, जीवन-रक्षक हैं. जब हम गंगा को बचाने की बात करते हैं तो वस्तुतः हम सब नदियों को बचाकर स्वयं अपने को बचाने की कोशिश कर रहे होते हैं. इसलिए आज प्रदूषण के संदर्भ में गंगा को बचाने का अभियान चलाया जा रहा है, तो कुल मिलाकर यह अभियान एक प्रदूषण-मुक्त जीवन की कामना को साकार करने की कोशिश ही है. गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक की गंगा-यात्रा जहां एक ओर इस समूचे भू-भाग को जीवन-यापन की सुविधाएं देने का एक माध्यम है, वहीं इस यात्रा में हमारे कथित विकास के अपवित्र अवशिष्ठ गंगा को अपवित्र भी बना रहे हैं. यह विडम्बना ही है कि मनुष्य के सारे पाप धोनेवाली गंगा स्वयं मैली हो रही है. इसलिए आज स्वयं को बचाने के लिए गंगा को बचाना ज़रूरी हो गया है. गंगा को, अर्थात हर नदी को. और इस बचाने का मतलब है, नदियों के जल को प्रदूषण-मुक्त करना. इसके साथ तो नदियों में घटते जल का सवाल भी जुड़ा है. इस कार्य को एक आवश्यक अभियान के रूप में चलाना होगा. इस कार्य में सरकार की भूमिका भी है, लेकिन समाज की भूमिका कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है. एक जागरूक एवं अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए समर्पित समाज ही  जीवन को सुरक्षित एवं बेहतर बनाने के लिए व्यवस्था को कुछ करने के लिए, बाध्य कर सकता है.

कुलपति उवाच

पार्थ, उठ, कीर्ति को प्राप्त कर!
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी

शब्द-यात्रा

पालकी पर सवार
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

दो मुझे…
अथर्ववेद

आवरण-कथा

सम्पादकीय
आओ, अपनी गंगा बचाएं
रवि चोपड़ा
खुद को बचाना है तो…
सुमंत मिश्र
प्रदूषण से कराह रही है पतितपावनी
राजेंद्र सिंह
दिव्यता की भव्य नदी
रमेश दवे
गंगा का शाप कब उतरेगा?
विद्यानिवास मिश्र
उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा
जवाहरलाल नेहरू
जय गंगे, आनंद तरंगे, कलरवे
अरविंद मिश्र
विज्ञान की कसौटी पर
डॉ. महाराज नारायण मेहरोत्रा
गं-गं गच्छति गंगा
कुबेरनाथ राय

साल पहले

आप अपना व्यक्तित्व लिखते हैं

मेरी पहली कहानी

छोटी आंखों के बड़े दायरे
प्रदीप पंत

आलेख

तृष्णा तू न मरी मेरे मन से
प्रभाकर श्रोत्रिय
ऐसा है सआदत हसन
मंटो
बस सौ साल और है मनुष्य का जीवन!
मधुसूदन आनंद
स्पष्ट और सही अवलोकन
जे. कृष्णमूर्ति
प्रशांत महासागर पर आरती का थाल
संतोष श्रीवास्तव
वैज्ञानिकों ने ढूंढ़ लिया है वैदिक ‘सरस्वती’ जल-मार्ग
कृपाशंकर सिंह
दस लाख साल पहले पकाने की शुरुआत!
वतन की खुशबू
सुधा
किताबें

व्यंग्य

ये दुनिया अगर जल भी जाए तो…
रवि श्रीवास्तव

धारावाहिक उपन्यास

कंथा (चौबीसवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कविताएं

लौट आओ
बुद्धिनाथ मिश्र
कुछ अप्रकाशित कविताएं
अज्ञेय
दुख
हूबनाथ
…सिखाकर छोड़ेगा मौसम
नेहा वैद
बोलना ज़रूरी है 
गुंटर ग्रास
तीन कविताएं-
सुखबीर

कहानियां

गुफ्तगू-
डॉ. नताशा अरोड़ा
काली ऊंची दीवारें 
वर्षा अडालजा

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