मैं ईमानदारी से अपना दाम
अदा करना चाहता हूं मेरे देश
अपना सही-सही आयकर
और उस पर तीन प्रतिशत शिक्षा कर भी
कि किसी सुदूर गांव की पाठशाला की छत
बरसात में टपके नहीं
और इतमीनान से अपना पाठ पढ़ सकें
वहां गरीबों, दलितों और अल्पसंख्यकों के भी बच्चे
कि मेरे गांवों और शहरों की सड़कें हों गड्ढा मुक्त
कि उन पर दौड़ती हुई गाड़ियों की
कमर न टूटे अचानक
कि उन पर अपनी साइकिलों से स्कूल-कालेज जाती हुई
किशोरियों को धक्के न खाने पड़ें
कि किसी बस्ती, किसी गांव, किसी मोहल्ले में
छाया न रहे घुप्प अंधेरा
मेरे अपार्टमेंट की भी लिफ्ट रुकी न रहे
बिजली कटौती के कारण
और मुझे अपनी दुखती टांगों से हांफते हुए
चढ़नी न पड़ें चार-चार सीढ़ियां
मैं अपने हिस्से का पूरा-पूरा आयकर भरता हूं हर साल
उसका सही-सही हिसाब लगाकर, मेरे देश
तुम्हारी ही दी हुई आय से
कि खुशहाल बनो तुम
यानी मैं और मेरे जैसे तमाम तमाम लोग
वे भी, जो अभी भी बहुत पीछे छूट गये हैं
विकास की इस दौड़ में
कि मेरी तरह ही पीने का स्वच्छ पानी मिल सके
ऊंचे पहाड़ों और सुदूर रेगिस्तानों में
रहने वाले मेरे भाई-बहनों को
कि तीन-तीन किलो मीटर तक
पानी की गगरी न ढोनी पड़े
उत्तराखंड और जैसलमेर की
काम के बोझे से वैसे ही लदी हुई औरतों को
कि किसी भी गांव में फसल बरबाद होने पर
खुदकशी न करनी पड़े
किसी भी किसान को
पर तुम हो कि मेरे देश जो
मेरे, मेरे सहवासियों के दिये हुए कर से
लोगों के भोजन, पानी, घर, बिजली सड़कों की
व्यवस्था करने के बजाय
नये-नये हथियार जुटाने
पड़ोसियों पर धौंस जमाने
मंत्रियों, अधिकारियों के बंगले सजाने
उनके लिये गाड़ियों
और हेलीकाप्टरों के काफ़िले मुहय्या कराने
होनहार खिलाड़ियों की सुविधाएं जुटाने के बजाय
कॉमनवेल्थ खेलों की शान-शौकत बढ़ाने
चालीस करोड़ का गुब्बारा उड़ाने
तैयारियों के नाम पर अंधाधुंध कमीशन खाने
और यहां तक कि
सरकारों की सलामती के लिए
विशेष पूजा-अर्चना आयोजित कराने में
भस्म कर रहे हो
उड़ा रहे हो उसे
सरकारों की तथाकथित उपलब्धियों के
पृष्ठांतरगामी विज्ञापनों पर.
(जिनके बल पर खरीदते हो
मेरे देश के अखबारों की आलोचनात्मक आवाज़)
लुटा रहे हो उसे
बड़े-बड़े पूंजीपतियों के कारखानों को दी गयी
सस्ती दर बिजली पर
उन्हें पांच-पांच बरस तक दी जाने वाली आयकर छूटों पर.
सोचो, तुम्हीं सोचो मेरे देश कि यह कहां का न्याय है
और पूछो तुम्हारे नाम पर राज करने वाली
इन सरकारों से, इनके नेताओं से
कि क्या वे चाहते हैं कि इस देश का आम आदमी भी
भ्रष्ट और बेईमान हो जाए उन्हीं की तरह\
घपला करने लगे अपने देयों के हिसाब में
क्योंकि अगर इसी तरह बर्बाद करते रहे वे देश का पैसा
हथियारों की खरीद में, शान-शौकत के प्रदर्शनों में
खाते रहे सौ प्रतिशत कमीशन
और जमा करते रहे स्विटजरलैंड के बैंको में
तो कौन ईमानदारी से देना चाहेगा अपना दाम?
क्यों हमें बेईमान बनाने पर तुले हैं वे
पूछो उनसे,
तुम्हीं पूछ सकते हो, मेरे देश!
क्योंकि तुम्हीं उनके मालिक हो.
(फ़रवरी, 2014)
]]>कुलपति उवाच
चातुर्वर्ण्य स्वभाव का वर्गीकरण है
के.एम. मुनशी
शब्द यात्रा
पसंद की चाह- 2
आनंद गहलोत
पहली सीढ़ी
आस्था
हरमन हेस्से
आवरण-कथा
सम्पादकीय
धरती मर भी सकती है…
गोपालकृष्ण गांधी
धरती का बुखार
अनुपम मिश्र
धरती अपने बच्चों का कर्ज है हम पर
डॉ. गरिमा भाटिया
प्रकाश में छुपा घुप्प अंधेरा
मैथ्यू थामस
बेहतर भविष्य के लिए
राजेंद्र पचोरी
विकास और पर्यावरण का संतुलन ज़रूरी है
अजय कुमार सिंह
दस पुत्र एक वृक्ष समान
शुकदेव प्रसाद
धारावाहिक आत्मकथा
सीधी चढ़ान (सत्रहवीं किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी
व्यंग्य
छुट्टी पर नहीं गये छेदी लाल
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आलेख
साहित्य का स्व-भाव
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