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नरेंद्र तिवारी – नवनीत हिंदी http://www.navneethindi.com समय... साहित्य... संस्कृति... Thu, 25 Sep 2014 11:56:36 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.8 http://www.navneethindi.com/wp-content/uploads/2022/05/cropped-navneet-logo1-32x32.png नरेंद्र तिवारी – नवनीत हिंदी http://www.navneethindi.com 32 32 दिसम्बर 2010 http://www.navneethindi.com/?p=859 Thu, 25 Sep 2014 11:56:36 +0000 http://www.navneethindi.com/?p=859 Read more →

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Dec 2010 Coverइतिहास अर्थात जो हुआ था, वह. लेकिन जो हुआ था का नाम ही इतिहास नहीं है. इसी तरह इतिहास को समझने का मतलब अतीत को समझना मात्र ही नहीं होता. सच पूछा जाए तो इतिहास की समझ

हमें वर्तमान को जीने और भविष्य को संवारने का अवसर देती है. पर यह समझ किसी पेंच से कम नहीं. अक्सर हम इतिहास को अपनी समझ के रंगीन चश्मे में से देखते हैं और अक्सर धोखा खा जाते हैं. तब इतिहास बोझ बन जाता है. हांफने लगते हैं हम उस बोझ को लादकर चलते हुए. यह थकान तन पर तो असर डालती ही है, मन-मस्तिष्क को भी थका देती है. दृष्टि धुंधला जाती है, दृष्टिकोण भ्रष्ट हो जाता है, गड़बड़ा जाता है वह कुतुबनुमा जिसके सहारे चलने और कहीं पहुंचने की उम्मीद करते हैं हम. ऐसे दृष्टिभ्रम के ढेरों उदाहरण हैं, जब हमने इतिहास से शिक्षा लेने के बजाये इतिहास को सीमित और स्वार्थपूर्ण आकांक्षाओं को पूरा करने का साधन बना लिया. इस प्रक्रिया में हमने यह याद रखना भी ज़रूरी नहीं समझा कि इतिहास का दुरुपयोग सिर्फ रास्ते रोकता ही नहीं, गलत रास्तों पर भी ले जाता है. ऐसी स्थिति में, जिन्हें हम उपलब्धियां समझ रहे होते हैं, वे वस्तुतः हमारी पराजय का उदाहरण
होती हैं.

शब्द-यात्रा

कुछ याद रहा, कुछ भूल गये
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

साथ जियें प्यारे दोस्त
अराम्बम ओंबी मेमचौबी देवी

आवरण-कथा

जब कुतुबनुमा गड़बड़ा जाता है
सम्पादकीय
प्रतिशोध का पटाक्षेप नहीं होता…
रामशरण जोशी
इतिहास आगे की राहों का पाथेय बने
विष्णु नागर
आओ, उगते सूरज का स्वागत करें
जवाहरलाल नेहरू
इतिहास का उपयोग और दुरुपयोग
फ्रेड्रिक नीत्शे

मेरी पहली कहानी

प्रतिबिम्ब
तेजेंद्र शर्मा

आलेख

वे थे वही जो नहीं थे वे
राजेंद्र मोहन भटनागर
जब बाबा सलकिया गये
सुरेंद्र तिवारी
अज्ञेय-स्मृति की परतें
प्रयाग शुक्ल
शिखरों को छूता शेखर
निर्मला डोसी
कविता के स्थायी सरोकार कम बदलते हैं
कुंवर नारायण
मणिपुर का राज्यपुष्प – शिरॉय लिली
डॉ. परशुराम शुक्ल
प्रेमचंद ने बेटी को पढ़ाया क्यों नहीं?
कमल किशोर गेयनका
कर्मयोगी का कर्म ही जप है
विनोबा भावे

व्यंग्य

इतिहास का पोथा–  बोध है या बोझा
यज्ञ शर्मा
एकलव्य और द्रोणाचार्य
शशिकांत सिंह ‘शशि’

धारावाहिक उपन्यास

कंथा (आठवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कहानी

अंतिम इच्छा
कृष्णा अग्निहोत्री

कविताएं

दो कविताएं
गुलज़ार
तीनों बंदर बापू के
नागार्जुन
ठंड की हर धूप में
अशोक विश्वकर्मा
कुहरे का कर्फ्यू
नरेंद्र तिवारी

समाचार

संस्कृति समाचार
भवन समाचार

 

 

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