आखिर एक जगह इकबाल से मुलाकात हो गयी, तो उन्होंने कहा- ‘डॉक्टर साहब, जब से ये तवायफें अनारकली से गायब हुई हैं, आप भी उनके साथ गायब हो गये हैं!’
‘बेशक’, इकबाल ने मुस्कराकर कहा- ‘आखिर तो वे ‘वतन’ की बेटियां हैं.’
गजल नहीं, नमाज
दाग नमाज पढ़ रहे थे कि कोई सज्जन उनसे मिलने आये, और उन्हें नमाज में निमग्न देखकर लौट गये. कुछ ही देर में जब दाग मुसल्ले पर से उठे, तो नौकर ने उन्हें यह बात बतायी. दाग ने कहा- ‘तो अभी रास्ते में ही होंगे. भागकर जाओ, और बुला लाओ.’
जब वे सज्जन वापस आये, तो दाग बोले- ‘आप आते ही लौट क्यों गये?’
‘आप नवाज पढ़ रहे थे!’
‘नमाज ही तो पढ़ रहा था, गजल तो नहीं पढ़ रहा था, जो आप देखते ही भाग खड़े हुए.’ दाग ने हंसते हुए कहा.
सबसे बड़े शाइर
हरीचंद अख्तर एक महफिल में बैठे हुए थे कि एक आदमी किसी कवि की तारीफों के पुल बांधने लगा. अंत में उसने कहा- ‘जवाब नहीं है उनका! वे सारा यूरोप घूम आये हैं, और बहुत बड़े शाइर हैं!’
हरीचंद अख्तर, जो काफी देर से चुपचाप सुनते रहे थे, यह कहने से अपने को रोक न सके- ‘अगर विदेश जाने से ही कोई आदमी बड़ा शाइर हो जाता है, तो मेरे पिताजी, जो स्वर्गपुरी में जा चुके हैं, सबसे बड़े शाइर कहे जा सकते हैं.’
रेल का खम्भा
जोश मलीहाबादी ने एक बार जिगर मुरादाबादी से कहा- ‘शराब ने कैसी बुरी हालत कर दी है आपकी. आप अपना मुकाम भूल बैठे हैं. मुझे देखिये, मैं आज भी रेल के खम्भे की तरह उसी जगह पर अटल खड़ा हूं, जहां आज से कई साल पहले था.’
जिगर ने उत्तर दिया- ‘बेशक, आप रेल के खम्भे की तरह हैं, लेकिन मेरी ाf़जंदगी एक रेलगाड़ी है, जो आप जैसे हर खम्भे को पीछे छोड़ती हुई हर मुकाम से आगे अपना नया मुकाम बनाती जा रही है.’
मजहब और हिमाकत
हिंदू-मुस्लिम एकता प्रचार के लिए आयोजित एक कवि-सम्मेलन में भाग लेने के लिए मजाज गये, तो उन्होंने पंडाल के दरवाज़े के ऊपर मोटे अक्षरों में लिखा हुआ देखा- ‘मजहब के नाम पर लड़ना हिमाकत है.’
उसे पढ़कर वे एक क्षण के लिए रुके. फिर अपने साथियों की ओर मुड़कर बोले- ‘और हिमाकत के नाम पर लड़ना मजबह है.’
जरूर पिटते
एक महफिल में किसी मनचले ने जिगर साहब की गज़ल के एक शेर की प्रशंसा करते हुए शरारतन कहा- ‘यह शेर मैंने लड़कियों के एक जल्से में पढ़ा, तो पिटते-पिटते बचा.’
जिगर ने उसके मजाक को समझते हुए कहा- ‘तो इस शेर में ज़रूर कोई नुक्स होगा, वरना आप हर हालत में पिटते.’
आजाद नज्म
एक बार किसी ने जोश मलीहाबादी से पूछा- ‘आप आजाद नज्म क्यों नहीं लिखते?’
‘एक बार कोशिश की थी लिखने की.’ जोश ने उत्तर दिया.
‘तो सुनाइये वह नज्म.’
‘रात-भर शराब पीता रहा और आजाद नज्म लिखता रहा. सुबह उठने पर उसे पढ़ा, तो उसके सारे बंद पाबंद थे.’
देर से आने वाला
इकबाल तब ग्यारह-बारह साल के थे. एक दिन ज़रा देर से स्कूल पहुंचे. जब वे कक्षा में दाखिल हुए, तो शिक्षक ने पूछा- ‘इकबाल, आज देर से क्यों आये?’
‘इकबाल ’ (सौभाग्य) देर से ही आता है.’ इकबाल ने सहज भाव से उत्तर दिया.
(मई 2071)
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