…कमरे में कुछ भी नहीं

।।आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।।

♦  दलाई लामा    >

बड़े हो गये हैं हमारे मकान और परिवार छोटे
बढ़ गयी हैं सुख-सुविधाएं,
कम पड़ता जा रहा है सम
डिग्रियां हैं हमारे पास लेकिन कम है समय
बढ़ गया है ज्ञान
पर घट गयी है निर्णय की क्षमता
विशेषज्ञों के साथ ही बढ़ रही हैं समस्याएं
बढ़ी हैं दवाएं पर कमज़ोर हुआ है स्वास्थ्य
हम चांद पर जाकर लौट आये हैं
पर सड़क पर रह रहे पड़ोसी से
मिलने का वक्त नहीं है हमारे पास
कम्प्यूटरों की भीड़, सूचना का फैलता संसार
पर कम होता जा रहा है संवाद
बढ़ती संख्या में घट रही है गुणवत्ता
यह फास्ट फूड और धीमे पाचन का वक्त है
लम्बे कदों और छोटे चरित्र का वक्त है
तेज़ मुनाफे और खोखले रिश्तों का वक्त है
यह ऐसा वक्त है जब खिड़की में बहुत कुछ है
और कमरे में कुछ भी नहीं!

(फ़रवरी, 2014)

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