♦ मनसुख >
जर्मनी दुनिया का जाना-माना औद्योगिक देश है, जहां दुनिया की बड़ी-बड़ी कारें बनती हैं. इस देश के एक छोटे-से कस्बे में न्यूक्लियर रीएक्टर पंप बनते हैं. कोई भी सोच सकता है कि ऐसे देश के लोग बड़ी शान-शौकत से जीते होंगे. जर्मनी जाने से पहले कम से कम मैं तो ऐसा ही सोचता था.
मैं जब हेम्बर्ग पहुंचा तो वहां स्थित मेरे कुछ सहकर्मियों ने मेरे लिए एक छोटी-सी पार्टी आयोजित की. पार्टी एक रेस्तरां में थी. जब हम वहां पहुंचे तो बहुत सारी मेज़ें खाली थीं. एक मेज़ पर एक युवा जोड़ा बैठा था. जिनके सामने सिर्फ दो प्लेटें थीं और बीयर के दो गिलास. उन्हें देखकर मुझे लगा कि इतना सादा खाना कैसे रोमांटिक हो सकता है. मैं यह भी सोच गया कि यह लड़की लड़के को छोड़ देगी.
एक दूसरी टेबल पर कुछ बूढ़ी औरतें बैठी थीं. मैंने देखा वेटर आकर सबकी प्लेट में कुछ बराबर-बराबर बांट देता था. उनमें से कोई भी प्लेट में कुछ छोड़ नहीं रही थी. फिर मेरा ध्यान उधर से हट गया. हम उस सबका इंतज़ार करने लगे जो हमने मंगवाया था. हमारे स्थानीय सहयोगी ने बहुत कुछ मंगा लिया था. भूख भी लग रही थी. हमने जल्दी-जल्दी खाया, जितना खा सके. बचा-खुचा प्लेटों में छोड़कर उठ गये. यह बचा-खुचा मंगाये गये का एक तिहाई तो होगा ही. किसी ने हमें पीछे से आवाज़ दी. वें बूढ़ी औरतें रेस्तरां के मालिक को कुछ कह रही थीं. आवाज़ मालिक की थी. औरतें उससे शिकायत कर रही थीं कि हमने प्लेटों में काफी कुछ छोड़ दिया है. मेरे एक साथी ने उन्हें कहा उनका इससे क्या लेना देना कि हमने कितना खाया, कितना छोड़ा. औरतें नाराज़ थीं. उनमें से एक ने मोबाइल से किसी को फोन से कुछ कहा. थोड़ी देर में एक वर्दीधारी पुलिस वाला आ पहुंचा. मामला जानकर उसने पचास यूरो का दंड लगा दिया. हमारे स्थानीय सहयोगी ने चुपचाप दंड भर दिया और अफसर से माफी मांगी. अफसर ने हमसे बड़े कठोर शब्दों में कहा, “वही मंगवाइए जो आप खा सकते हैं. पैसा भले ही आपका है, संसाधन समाज के हैं. दुनिया में अनेक लोग संसाधनों के अभाव में जी रहे हैं. संसाधनों के अपव्यय का आपको कोई अधिकार नहीं है.”
हमारे चेहरे लाल पड़ गये थे. हम सब मन ही मन उससे सहमत थे. उस अमीर देश के लोगों के सोच ने हमें शर्मिंदा कर दिया. मेरे सहयोगी ने दंड के उस टिकट की फोटो स्टेट प्रतियां निकालकर हम सबको यादगार के रूप में दी थीं. मैंने उसे फ्रेम करके घर की दीवार पर लगा रखा है. ताकि हमें याद रहे….
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