लंच में सिर्फ एक चीज़

♦  सामरसेट माम     

 एक खेल के बीच में मेरी नजर उस पर पड़ा और उसका एक इशारा पाकर मध्यांतर में मैं उसकी ओर चला गया और उसकी बगल में बैठ गया. उससे मेरी मुलाकात हुए बहुत समय बीत चुका था, और यदि मेरे पास बैठे हुए एक व्यक्ति ने उसका नाम न बता दिया होता, तो शायद मैं उसे पहचान भी न पाता.

     वह मुझसे बड़े तपाक से मिली- ‘बहुत दिन के बाद हमारी मुलाकात हुई है. समय को बीतते देर नहीं लगती. पहली मुलाकात का समय अब कहां याद है! जब मैंने आपको पहली बार देखा था, तो आपने मुझे लंच साथ खाने का निमंत्रण दिया था.’

     क्या सचमुच मुझे याद है?

     यह बीस साल पहले की बात है, जब मैं पैरिस में रहता था. लैटिन क्वार्टर में. वहां मेरा एक छोटा-सा कमरा था और बड़ी कठिनाई से मैं केवल इतना कमा लेता था कि शरीर और प्राणों को जीवति रख सकूं. उसने मेरी एक पुस्तक पढ़ी थी और उसके बारे में मुझे लिखा था.

     कुछ दिनों बाद उसका एक और पत्र मुझे मिला, जिसमें उसने लिखा था कि मैं पैरिस से गुजर रही हूं, आपसे मुलाकात करना चाहती हूं. यों तो समय मेरे पास बहुत कम है, लेकिन बृहस्पति को मैं खाली हूं. सुबह मुझे लेक्जमबर्ग में बितानी है. क्या आप उसके बाद मुझे फ्वेट रेस्तरां में एक छोटा-सा लंच दे सकेंगे?

     इस रेस्तरां में फ्रांसीसी सेनेट के सदस्य खाना खाने को आते थे, और मेरी दृष्टि से वह महंगा था कि आज तक मैं उसे अंदर से देख भी न सका था. लेकिन उसकी कृपालुताओं ने मुझे उसका कृतज्ञ बना दिया था, और मेरी आयु अभी इतनी नहीं थी कि एक सुंदर महिला से ‘नहीं’ कहने का ढंग जानूं. यों मेरा ख्याल तो यह है कि आखिरी उम्र तक भी बहुत कम पुरुष यह सीख पाते हैं.

     उस समय मेरे पास अस्सी फ्रांक थे, और सारा महीना बाकी था. महीने के मध्य में कहीं से किसी आय की आशा भी नहीं थी. मैंने सोचा, औसत दर्जे के एक लंच का मूल्य पंद्रह फ्रांक होगा, और यदि अगले दो सप्ताहों में काफी पीना बंद रखूं, तो महीना आसानी से गुजर जायेगा. अतः मैंने अपनी कलमी मित्र को लिख दिया कि मैं उसे बृहस्पति को सुबह साढ़े बारह बजे फ्वेट रेस्तरां में मिलूंगा.

     वह इतनी युवा नहीं थी, जितनी मैं समझता था और शक्ल-सूरत से भी साधारण ही थी. उसकी आयु चालीस के लगभग होगी. उस आयु में यद्यपि आकर्षण बाकी रहता है, लेकिन पहली मुलाकात में फौरन भावनाएं उभार देने की क्षमता से वंचित होता है. वह बड़ी बातूनी थी, लेकिन उसकी बातचीत का सारा विषय मेरा व्यक्तित्व था. इसलिए मैं उसकी सारी बातें पूरे ध्यान से सुनने को तैयार था.

     जिस समय वेटर ने रेस्तरां की मेज पर मीनू लाकर रखा, तो मैं घबरा-सा गया, क्योंकि यहां तो हर चीज का मूल्य मेरी आशा से कहीं अधिक था. लेकिन उसने मुझे विश्वास दिलाया- ‘मैं लंच में एक से ज्यादा चीज़ नहीं खाती.’

     ‘जनाब, आप यह क्या फरमाती हैं.’ मैंने बड़ी उदारता के साथ उत्तर दिया.

     ‘मैं सच कहती हूं. लंच में मैं कभी एक’ चीज से ज्यादा नहीच खाती. मेरा ख्याल है कि आजकल लोग बहुत अधिक खाने लगे हैं. मेरे लिए तो थोड़ी-सी मछली काफी होगी. मुझे शक है, इस रेस्तरां में सामन मछली मौजूद नहीं होगी?

     सामन का मौसम अब शुरू हो ही रहा था और मीनू में उसकाद जिक्र नहीं था. इस लिए मैंने वेटर से पूछताछ की, उसने कहा कि आज बहुत उम्दा किस्म के सामन आये हैं और पक रहे हैं. आज पहला ही दिन था, इसलिए मैंने अपने मेहमान के लिए उसका आर्डर दे दिया. वेटर ने मेरी मेहमान से पूछा-जब तक सामन पककर तैयार होगा, क्या आप किसी और चीज से शौक फरमायेंगी?

     ‘नहीं,’ उसने जवाब दिया-‘मैं लंच में एक चीज से ज्यादा नहीं खाती. पर यदि तुम्हारे पास मछली के अंडे (कैवियेर) हों, तो ले सकती हूं. अंडों में कोई हर्ज नहीं.’

     मेरा दिल डूबे लगा. मैं जानता था कि मछली के अंडों का मूल्य मैं शायद चुका न पाऊं. लेकिन जाहिर है, मैं यह बात प्रकट नहीं कर सकता था. सलिए मैंने अपना दिल मजबूत करके वेटर से कहा कि मछली पेंडे ले आओ. मगर मैंने अपने लिए मीनू की सबसे स्सती चीज मंगायी-मटन-चाप.

     ‘मेरा ख्याल है कि आप इस समय गोश्त लेकर गलती कर रहे हैं.’ मटन-चाप का नाम मेरी ज़बान पर आते ही उसने कहा- ‘मैं नहीं समझती कि आप मटन-चाप जैसी गरिष्ठ चीज खाकर काम कैसे कर पायेंगे.’ मैं मेदे पर ज्यादा भार डालने की कायल नहीं.’

     उसके बाद पेय का सवाल आया. उसने कहा-‘मैं लंच में कभी कोई पेय नहीं पीती.’

     ‘मैं भी कभी नहीं पीता.’ मैंने अविलंब जवाब दिया.

     लेकिन उसकी बातजीत का सिलसिला अभी खत्म नहीं हुआ था. ‘ह्राइट वाइन इसका अपवाद है,’ उसने इस प्रकार कहा, जैसे मेरी बात दुनी ही न हो-‘फ्रांस की बनी व्हाइट वाइन कितनी हल्की होती है. बड़ी लाजवाब चीज है और खाने को भी खूब हजम करती है.’

     ‘तो आप क्या पीना पसंद करेंगी?’ मैंने एक अच्छे मेज़बान के रूप में पूछा, लेकिन मेरा स्वर बहुत अधिक उदारतापूर्ण नहीं था.

     उसने अदा-भरे अंदाज में मुस्कराने का प्रयत्न किया और उसके सारे सफेद दांत एक साथ दिखाई दे गये- ‘मैं शैम्पेन पसंद करूगीं, क्योंकि मेरे डाक्टर ने केवल इसी के उपयोग का परामर्श दिया है.’

     मुझे अब भी अच्छी तरह याद है कि उसके इस कथन पर मैं एकदम पीला पड़ गया था. मैंने आधी बोतल शैम्पेन का आर्डर भी दे दिया. बात छिपाने के लिए मैंने कहा कि मेरे डाक्टर ने मुझे शैम्पेन का उपयोग करने से मना किया है.

     ‘फिर आप क्या पियेंगे?’

     ‘पानी!’ मैंमे इस तरह जवाब दिया, मानों मेरे डाक्टर ने दुनिया-भर के सभी पेयों की मनाही कर दी हो.

     उसके मछली के अंडे भी खाये और सामन मछली भी. बड़ी खुशी और जोश के साथ वह कला, साहित्य और संगीत पर भाषण देती रही, लेकिन शायद मैंने उसका एक वाक्य भी ढंग से नहीं सुना. उस समय मेरे दिल में केवल एक ही खयाल था कि मेरे पास मौजूद रकम बिल चुकाने के लिए पूरी भी होगी या नहीं?

     लेकिन जब मेरा मटन-चाप मेज पर लाकर रखा गया, तो उसकी सारी बारचीत की दिशा मेरी खाने की आदतों की ओर मुड़ गयी. उसने बड़ी गम्भीरता के साथ कहा- ‘मेरा ख्याल है कि आप लंच में गरिष्ठ चीजों खाने के आदी हैं. और मुझे विश्वास है, आप गलती पर है. आप मेरा उदाहरण सामने क्यों नहीं रखते? आपको भी केवल एक चीज खानी चाहिये. कम-से-कम कुछ दिन यह प्रयोग करके देखिये. मुझे पूरा विश्वास है, शेष सारा दिन अपने आपको अधिक सचेत और चुस्त महसूस करेंगे.’

     ‘मैं भी तो केवल एक ही चीज खा रहा हूं,’ मैंने उस समय कहा. अब वेटर पुनः मीनू लेकर आ रहा था. उसने बहुत लापरवाही के साथ उसे अपनी ओर बुलाया.

     ‘नहीं, नहीं! मैं लंच में कोई चीज नषिं खाती. पर कई हल्की चीजें खाने में कोई हर्ज नहीं. इससे अधिक मुझे कभी इच्छा नहीं होती. और यह भी मैं इसलिए खाती हूं, ताकि लंच समाप्त होने के बाद बातचीत को संक्षिप्त करके उठाना न पड़े. उदाहरण के लिए. यदि इस होटल में ‘एस्परेगस’ तैयार हों, तो मैं उनका उपयोग करने में कोई हर्ज नहीं समझूंगी, बल्कि अगर उन्हें खाये बिना ही पैरिस से चली गयी, तो इसका मुझे अफसोस रहेगा. पेरिस में एस्परेगस बहुत स्वादिष्ट पकाये जाते हैं.’

     मेरा दिल बुरी तरह डूब गया. मैंने एस्परेगस सिर्फ दुकानों पर देखे थे और कम-से-कम इस बात से अवगत ता ही कि वे खौफनाक हद तक महंगे होते हैं. प्राय दुकानों पर उन्हें देखकर मेरे मुह में पानी आ जाया करता था.‘मदाम यह मालूम कर रही है कि तुम उनके लिए उम्दा किस्म के एस्परेगस ला सकोगे?’ मैंने वेटर से पूछा.

     अपनी पूरी शक्ति के साथ मैंने इसका प्रयत्न किया कि वेटर ‘नहीं’ कह दे. लेकिन उसके चौड़े चेहरे पर मुस्कराहट फैल गयी, और उसने मुझे यकीन दिलाया कि उनके होटल में इतने बड़े शानदार, नर्म और उम्दा एस्परेगस हैं कि शायद ही पैरिस में कहीं और वैसे एस्परेगस मिल सकें.

     ‘भख अब मुझे बिलकुल बाकी नहीं तह गयी है,’ मेरी मेहमान ने एक सांस ली- ‘लेकिन अगर आप जोर देंगे, तो मुझे कम-से-कम इस समय एस्परेगस खान में तो कोई आपत्ति नहीं होगी.’

     मैंने उसका भी आर्डर दे दिया.

     ‘क्या आप स्वयं बिलकुल नहीं खाना चाहते? अपने लिए भी क्यों नहीं मंगवाये?’  

     ‘नहीं! मैं एस्परेगस नहीं खाता!’

     ‘मैं जानती हूं कि कई लोग एस्परेगस पसंद नहीं करते. लेकिन सचाई यह है कि आप लोग केवल गोश्त खा-खाकर अपने स्वास्थ्य को तबाह कर रहे हैं.’

     एस्परेगस तैयार नहीं थे, इसलिए हमें उनके तैयार होने तक प्रतीक्षा करनी पड़ी. मुझ पर घबराहट और डर पूरी तरह छा हुए थे. उस समय मेरे सामन यह सवाल नहीं था कि बाकी महीने के लिए मैं कितनी रकम बचा सकूंगा, बल्कि सवाल यह था कि क्या मेरे पास उस लंच का बिल चुकाने लायक भी रकम मौजूद है? मैं सी उधड़बुन में था, और मेरा अनुमान यह था कि मेरी जेब में जितनी रकम है, वह बिल से दस फ्रांस कम है, और अपने मेहमान ही से ये दस फ्रांस उधार लेने पड़ेंगे जिसके लिए मैं बिलकुल तैयार नहीं था.

     मैं जानता था कि कितनी रकम मेरी जेब में है और मैंने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि अगर बिल उससे अधिक का हुआ, तो मैं अपना हाथ पहले जेब में डालूंगा, और फिर नाटकीय ढंग से घबराकर कहूंगा कि किसी ने मेरी जेब काट ली है. जाहिर है कि अगर मेरी मेहमान के पास भी बिल बुरी बात होगी. ऐसी अवस्था में केवल एक उपाय बाकी रह जाता है कि मैं अपनी घड़ी यहां छोड़ जाऊं और वादा करूं कि बाद में आकार बिल चुका दूंगा.

     आखिर एस्परेगस के दर्शन हुए. सचमुच बहुत उम्दा एस्परेगस थे. उसमें डाली गयी क्रीम की सुगंधि से मेरा दिमाग तर हो उठा और मैं मुंह के पानी को बड़ी मुश्किल से रोक पाया. मैं उस औरत को देखता रहा कि किस बेपरवाही के साथ वह उस अत्यंत स्वादिष्ट चीज को तेजी से निगले जा रही है. सचमुच मेरी दशा उस समय दयनीय थी. आखिर उसने यह भी खत्म कर लिया.

     ‘काफी?’ मैंने पूछा.

     ‘हां, केवल एक आइसक्रीम और काफी,’ उसने जवाब दिया. शायद उस समय तक मैं अपनी उलझनों पर काबू पा चुका था, क्योंकि काफी संयत स्वर में मैंने अपने लिए केवल काफी और उसके लिए काफी और आइसक्रीम का आर्डर दिया.

     ‘आपको पता है, इस दुनिया में एक चीज ऐसी है, जिस पर मैं पूरा विश्वास रखती हूं,’ उसने आइसक्रीम खाते हुए कहा-‘हर व्यक्ति को एक निवाले की भूख छोड़कर डाइनिंग-टेबल से उठ जाना चाहिये.’

     मेरा मन फिर विचलित होने लगा-‘क्या अभी आप भूखी है?’ मैंने पूछा.

     ‘नहीं साहब! मैं भूखी नहीं हूं. मैं लंच तो खाती ही नहीं. मेरा तो नियम यह है कि सुबह एक प्याली काफी और फिर शाम को डिनर. लेकिन अघर कभी लंच खाना ही पड़े, तो उसमें एक चीज से ज्यादा नहीं खाती. मैं तो आपके बारे में कह रही थी.’ ‘अच्छा! यह बात है!’

     फिर एक और भयानक दुर्घटना हुई. हम काफी की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि हेड वेट्रेस अपने भद्दे चेहरे पर बहुत बेहूदा मुस्कराहट लिए प्रकट हुई. उसके हाथ में एक बड़ी थाली थी, जिसमें कई बड़ी-बड़ी नाशपातियां रखी हुई थीं. क्या ही उम्दा नाशपातियां थीं वे! उनके पीलेपन में किसी मासूम लड़की की लज्जा का सौकुमार्य था, और शायद इटली के सारे सुहावने दृश्य सिमटकर उसमें एकत्र हो गये थे.

     लेकिन निश्चित रूप में मौसम नाशपाती का नहीं था, और भगवान ही जानता था कि इसका मूल्य क्या होगा. मुझे भी इसका पता चला थोड़ी देर बाद. क्योंकि मेरी मेहमान ने बातचीत के बीच ही हाथ बढ़ाकर एक नाशपती उचक ली थी.

     ‘आपने तो अपना पेट इतने सारे गोश्त से भर लिया है!’ यह इशारा मेरे थोड़े-से मटन-चाप की ओर था, जिससे सस्ती चीज इस होटल में शायद और कोई नहीं थी. ‘और आप अब और कोई चीज खाने योग्य नहीं रहे हैं, देखिए न! मैंने, हल्का आहार किया था, इसलिए अब मैं नाशपाती का लुप्त भी उठा सकती हूं.’

     आखिर बिल भी आ गया. जब मैंने वह चुकाया, तो सारी रकम में से केवल इतने पैसे बचे थे, जो टिप के लिए भी अपर्याप्त थे. थोड़ी देर तक मेरी मेहमान की आंखें उन तीन फ्रांकों पर टिकी रहीं, जो मैंने वेटर को टिप के तौर पर दिये थे, और मैंने अनुभव किया कि उसने मुझे बहुत निम्न वर्ग का इंसान समझा होगा. लेकिन जब रेस्तारां से बाहर निकला, तो सारा महीना मेरे सामने था और मेरी जेब में एक पैसा भी बाकी न था.

     ‘आप भी मेरे उदाहरण पर ज़रूर अमल कीजिये,’ जब हम हाथ मिलान लगे, तो उसने मुझसे मुखातिब होकर कहा- ‘मैं लंच में एक चीज से ज्यादा कभी नहीं खाती.’

     ‘मैं तो इससे भी बढ़कर कुछ करने वाला हूं,’ मैंने जवाब दिया- ‘आज रात को डिनर में मैं कुछ भी नहीं खाऊंगा.’

     ‘मस्खरे!’ निकट खड़ी मोटर में प्रवेश करते हुए कहा- ‘आप पूरे मस्खरे है.’

     लेकिन आखिर मैंने अपना बदला ले लिया. मैं नहीं समझता कि मैं प्रतिशोधक स्वभाव का भी हूँ. लेकिन आज की मुलाकात में मैंने अनुमान लगाया, उसका वजन दस मन से कम नहीं.

(मार्च 1971)

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