।। आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः।।
चिड़िया को लाख समझाओ
कि पिंजरे के बाहर
धरती बहुत बड़ी है, निर्मम है,
वहां हवा में उन्हें
अपने जिस्म की गंध तक नहीं मिलेगी.
यूं तो बाहर समुद्र है, नदी है, झरना है,
पर पानी के लिए भटकना है,
यहां कटोरी में भरा जल गटकना है.
बाहर दाने का टोटा है,
यहां चुग्गा मोटा है.
बाहर बहेलिए का डर है,
यहां निर्द्वद्व कंठ-स्वर है.
फिर भी चिड़िया
मुक्ति का गाना गायेगी,
मारे जाने की आशंका से भरे होने पर भी,
पिंजरे से जितना अंग निकल सकेगा,
निकालेगी,
हरसूं ज़ोर लगायेगी
और पिंजरा टूट जाने या खुल जाने पर
उड़ जायेगी.
– सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
अप्रैल 2016