मधुमक्खी की नयी नौकरी

⇐  मणिशंकर  ⇒  

     मधुमक्खी अब तक हमें शहद देती थी, मोम देती थी मेहनती बनने का उपदेश देती थी. अब वह हमारा एक और काम किया करेगी, या कहिये उससे जबर्दस्ती कराया जायेगा.

    बेचारी मधुमक्खी का नन्हा-सा पेट नोचकर ‘जैविक विश्लेषक’ (बायो-एना-लाइजर) नामक यंत्र में रख दिया जायेगा और उसकी सहायता से हवा और पानी संदूषणों तथा दवाओं और रसायनों के प्रभावों का अध्ययन किया जाया करेगा.

    मधुमक्खी का पेट इतना अधिक संवेदनशील होता है कि उसकी मदद से ‘जैविक विश्लेषक’ सिगरेट और पाइप के धुएं में अंतर कर सकता है, कार-चालक की सांस में स्थित अल्कोहल की मात्रा को नाप सकता है और पानी में अत्यंत अल्प मात्रा में (10 लाख के पीछे 1 अंश जितनी मात्रा में) उपस्थित संदूषणों को भी पहचान सकता है.

    इस यंत्र के अविष्कारक हैं अमरीकी कीटविज्ञानी डा. राय जे. पेन्स. दीमक, तिलचट्टे, भुनगे आदि को नष्ट करने की कई विधियों के पेटेंट वे ले चुके हैं और फिलहाल कैलिफोर्निया राज्य के कीट-उन्मूलन आयोग से सम्बंधित हैं.

    बचपन से उन्हें मधुमक्खियों से लगाव था. इतना कि 1933 में कैलफोर्निया के भूकम्प के समय जब सब लोग अपने प्राण बचाने में लगे हुए थे, वे अपनी पालतू मधुमक्खियों को संभाल रहे थे.

    बड़े होने पर भी मधुमक्खियों से उनका नाता बना रहा. 1963 में उन्होंने एक साथ वैज्ञानिक के सहयोग से एक शोध लेख  मधुमक्खियों के सम्बंध में लिखा, जो ब्रिटेन की विश्वप्रसिद्ध विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ में छपा था.

          मधुमक्खियों का अध्ययन करते-करते उन्हें एक बात सूझी. अभी प्रयोगशालाओं में औषधों और रसायनों के शारीरिक प्रभाव का अध्ययन करने के लिए मेढक की टांगों की मांसपेशियां काम में लायी जाती हैं. कटी हुई बहुत बार आवश्यकतानुसार उपलब्ध भी नहीं हो पाती.

    डॉ. पेन्स ने सोचा कि क्या इनकी जगह मधुमक्खी का प्रयोग नहीं किया जा सकता. पहले मधुमक्खी के डंक का उपयोग करने का विचार आया. अंत में उन्होंने समूचे पेट का उपयोग करने की ठानी.

    मधुमक्खी के शरीर के तीन भाग होते हैं- सिर, वक्ष, पेट. और उसका पेट केवल पाचन-यंत्र नहीं है. उसमें श्वास-तंत्र, रक्तपरिसरण-तंत्र, प्रजनन-तंत्र, स्नायु-तंत्र और मांसपेशी-तंत्र भी स्थित होते हैं. लिहाजा उसे मेंढक की टांग की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होना ही चाहिए. प्रयोगों से पाया गया कि यदि कोई भी विजातीय द्रव्य अत्यल्प मात्रा में भी आस-पास के वातावरण में उपस्थित हो, या इंजेक्शन द्वारा अंदर पहुंचाया जाये, तो पेट तुरंत कांपने लगता है.

    अब पेन्स के लिए एक ही काम शेष था. ऐसा एक सूक्ष्म बनाना, जो इन कम्पनों को ग्रहण करके उन्हें अभीष्ट सूचना का रूप दे सके. कीट-नाशकों के सिलसिले में उन्हें यंत्र-निमार्ण का अनुभव था. उसके आधार पर उन्होंने ‘जैविक विश्लेषक’ तैयार किया.

    इस यंत्र के चार मुख्य अंग हैं- 1. मधुमक्खी के पेट के कम्पनों को ग्रहण करने वाला, रेगमाल कागज मढा हुआ मंच, 2. हाई-फाई की सूई जैसा एक विद्युत उपकरण, जो कंपनों को संकेतों में बदलता है, 3. विस्तारक-यंत्र (एम्ललिफायर), और 4. अंकन-लेखनी.

    मधुमक्खी को पकड़कर उसका पेट चिमटी द्वारा तोड़ लिया जाता है. (पेन्स इसके पूर्व मधुमक्खी को दवा के ज़रिये बेहोश कर देते हैं.) इस कटे पेट को ‘जैविक विश्लेषक’ के अंदर मंच पर रख दिया जाता है. फिर यंत्र में लेखनी लगा दी जाती है, जो पेट के कंपनों को कांपते लकीरों के रूप में कागज पर अंकित करती है.

    अब ज़रा डॉ. पेन्स की प्रयोगशाला में चलिए. ‘जैविक विश्लेषक’ में रखे मधुमक्खी के पेट में डॉ. पेन्स इंजेक्शन द्वारा डेक्सिड्राइन नामक रसायन पहुंचा रहे हैं अत्यल्प मात्रा में. (डेक्सिड्राइन का आजकल काफी दुरुपयोग हो रहा है संवेदन के द्वार खोलने वाली दवा के रूप में .) पांच सेकेंड के भीतर ‘पेट’ बहुत ज़ोर से हिलने लगता है और कागज पर अंकन-लेखनी तीन-चार इंच चौड़ी हिलती लकीरें खिंचने लगती है.

    फिर पेन्स ने ‘एमिटाल’ नामक रसायन का इजेक्शन दिया है. लीजिए, सेकेंड-भर में कम्पन लगभग मंद हो गये. (एमिटाल का उपयोग संवेदन-मंदक के रूप में किया जाता है.)

    डॉ. पेन्स बताते हैं कि मधुमक्खी केवल दो प्रकार के आहार का सेवन करती है- 1. पुष्परस, जो कि विशुद्ध शर्खरा और जल है, तथा 2. पराग, जो कि विशुद्ध प्रोटीन और विटामिन है. जब इनसे भिन्न कोई भी तत्त्व तनिक-सी भी मात्रा में मधुमक्खी के पेट के किसी तंत्र में प्रविष्ट होता है, तो पेट उसे बाहर निकालने के लिए भगीरथ प्रयत्न करता है. उस कोशिश में उसमें कम्पन उत्पन्न होते हैं.

    मधुमक्खी के पेट की सूक्ष्म संवेदनशीलता का एक नमूना लीजिए. डा. पेन्स ने एक दिन अमरीकी कृषि-विभाग द्वारा मुहैया किये गये भभके के पानी (डिस्टिल्डवाटर) की शुद्धता जांचने के लिए उसकी एक बूंद का कुछ अंश मक्खी-पेट में डाला. ‘जैविक विश्लेषक’ की कलम बड़ी तेजी से हिलने और लकीरें खींचने लगी. बाद में सावधानी से जांचने पर पता चला की तांबे के जिस बंद पीपे में भभके का पानी रखा हुआ था, उसके अंदर कहीं-कहीं कलई उतर गयी थी.

    एक बार लास एंजल्स में घना धूम-कोहरा (स्माग) छाया था, डॉ. पेन्स ने एक मर्तबान का ढ़क्कन क्षण-भर के लिए धूम-कोहरे में खोला और बंद कर दिया. जब यह दूषित हवा ‘जैविक विश्लेषक’ में छोड़ी गयी, तो मधुमक्खी का पेट बुरी तरह हिलने लगा.

    डॉ. पेन्स का कहना है कि ‘जैविक विश्लेषक’ का उपयोग मुख्यतया तीन चीजों के लिए हो सकेगा-

    1. जल-वायु के संदूषणों की जांच,

    2. खतरनाक औषधों की जांच

    3. कीट-नाशकों की जांच

    कई औषधों और कीटनाशकों के प्रभावों का उसकी मदद से अध्ययन किया भी जा रहा है.

( फरवरी 1971 )

    

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