आवरण–कथा
अपने असीम आकर्षण और विविधता के कारण भारत मुझे लगातार मोहित करता रहा है. जितना मैंने भारत को देखा उतना ही मुझे यह लगा कि किसी के लिए भी भारत को सम्पूर्णता में समझना कितना मुश्किल है. भारत की विशालता ने ही मुझे आकर्षित नहीं किया. उसकी विविधता मात्र से ही मैं नहीं रीझा, बल्कि उसकी आत्मा की गहराई भी मैं कभी नहीं नाप पाया– हालांकि कभी–कभी इस गहराई की झांकियां ज़रूर मुझे ललचाती रहीं. यह एक ऐसी प्राचीन शिला या फलक की तरह था, जिसपर विचारों की एक के ऊपर एक कई इबारतें लिखीं थीं, कई दिवास्वप्न उकेरे हुए थे, पर खासियत यह है कि पहले लिखी कोई भी इबारत पूरी तरह न तो गायब हुई थी, न मिटी थी. यह सब हमारे चेतन अथवा अवचेतन स्व में बना रहा है, भले ही हमें इसका अहसास न होता हो, और इसी से भारत का जटिल और रहस्यमय व्यक्तित्व बना है. आसानी से समझ में न आने वाली और कभी–कभी उपहास करती मुस्कान वाला यह स्फिन्क्स–सा चेहरा सारे भारत में देखा जा सकता है. हालांकि ऊपरी तौर पर हमारे देश की जनता में विविधता दिखाई देती है, अनगिनत बहुलता है हमारे देश में, पर सब तरफ एकत्व की छाप भी है, जिसने हमें युगों से एक रखा हुआ है, भले ही कैसे भी राजनीतिक संकट या दुर्भाग्य हमें झेलने पड़े हों. भारत की स्वाभाविक एकता इतनी ताकतवर है कि कोई भी राजनीतिक विभाजन, कोई भी संकट इस एकता को नहीं मिटा पाया है.
भारत को, या किसी भी मुल्क को किसी प्रकार की मानव–जाति के रूप में देखना असंगत है. मैं ऐसे नहीं देखता. मैं भारतीय जीवन की विभिन्नता और विभेदों से पूरी तरह परिचित हूं. ये भेद विभिन्न वर्गों, जातियों, धर्मों, वर्णों के हैं, सांस्कृतिक विकास के अलग–अलग स्तरों के हैं. फिर भी, मैं सोचता हूं एक लम्बी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और जीवन के प्रति एक स़ाफ दृष्टिकोण वाला देश एक ऐसी भावना को विकसित करता है जो अनोखी होती है. और जो उसके सब बच्चों को प्रभावित करती है, भले ही वे आपस में कितने ही अलग–अलग दिखते हों. भारत की यही बात मैं समझना चाहता हूं, सिर्फ जिज्ञासा–वश नहीं, हालांकि जिज्ञासा है, लेकिन इसलिए कि मुझे लगता था कि इससे मुझे अपने देश को, अपने लोगों को समझने के लिए एक कुंजी मिलेगी, मेरे विचारों और कार्यों को कोई राह सूझेगी. राजनीति और चुनाव रोज़मर्रा की चीज़ें हैं और इन्हें लेकर हम बेकार की बातों पर उत्तेजित होते रहते हैं. लेकिन यदि हमें भारत के भविष्य का भवन सुरक्षित, मज़बूत और खूबसूरत बनाना है तो हमें बुनियाद के लिए गहरे खोदना होगा.
अक्सर अपनी सभाओं में मैं अपने श्रोताओं को अपने इस मुल्क हिंदुस्तान के बारे में बताता हूं, जिसका नाम भारत भी है. यह पुराना संस्कृत नाम हमारे समाज के पौराणिक पूर्वज के नाम पर रखा गया है. शहरों में मैं शायद ही ऐसा करता हूं, क्योंकि शहरों के लोग कुछ ज़्यादा पढ़े–लिखे होते हैं और ज़्यादा तर्कसंगत बातें सुनना पसंद करते हैं. पर हमारी ग्रामीण जनता का दृष्टिकोण कुछ संकुचित होता है. उन्हें मैं अपने इस महान देश के बारे में, जिसकी स्वतंत्रता के लिए हम लड़ रहे हैं, बताता हूं. यह बताता हूं कि कैसे इसका हर हिस्सा अलग है, फिर भी यह सारा भारत है. पूर्व से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक यहां के किसानों की समस्याएं एक जैसी हैं. उन्हें उस स्वराज की बात बताता हूं, जो सबके लिए होगा, हर हिस्से के लिए होगा. मैं उन्हें बताता हूं कि खैबर दर्रे से लेकर कन्याकुमारी तक की यात्राओं में हमारे किसान मुझसे एक जैसे सवाल पूछते हैं. उनकी परेशानियां एक जैसी हैं– गरीबी, कर्जे, निहित स्वार्थ, ज़मींदार, सूदखोर, भारी किराया और करों की दरें, पुलिस की ज़्यादती. यह सब उस ढांचे में समाया हुआ है जो विदेशी सत्ता ने हमारे ऊपर थोपा है– और इससे छुटकारा सबको मिलना चाहिए. मैं कोशिश करता हूं कि वे भारत को सम्पूर्णता में समझें– कुछ अंशों में सारी दुनिया को भी, जिसका हम हिस्सा हैं. मैं चीन, स्पेन, अबीसीनिया, मध्य यूरोप, मिस्र और पश्चिम एशिया के मुल्कों में चल रहे संघर्षों की बात करता हूं. मैं उन्हें रूस और अमेरिका में हुए परिवर्तनों की बात बताता हूं. यह काम आसान नहीं है, पर इतना मुश्किल भी नहीं हैं जितना मुश्किल मैं समझ रहा था. हमारे प्राचीन महाकाव्यों, हमारी पौराणिक कथाओं और किंवदंतियों से वे भली भांति परिचित हैं और इसके माध्यम से वे अपने देश को जानते–समझते हैं. हर जगह मुझे ऐसे लोग मिले जो तीर्थयात्रा के लिए देश के चारों कोनों तक जा चुके थे.
कभी–कभी जब मैं किसी सभा में पहुंचता तो भारत माता की जय के नारे के साथ मेरा स्वागत किया जाता है. मैं अचानक उनसे पूछ बैठता हूं कि इस नारे का मतलब क्या है, यह भारत माता कौन है, जिसकी वे जय चाहते हैं. मेरे इस सवाल से लोग हैरान होते हैं. जब उन्हें कोई जवाब नहीं सूझता तो एक–दूसरे को देखते हैं, मुझे देखते हैं, मैं सवाल दुहराता हूं. तब इस धरती से युगों से जुड़ा कोई जाट कहता है, भारत माता हमारी धरती है. कौन–सी धरती? उनके गांव की ज़मीन या उनके जिले की या सारे भारत की? सवाल–जवाब चलते रहते हैं. फिर वे परेशान होकर मुझसे ही पूछते हैं कि मैं उन्हें भारत माता का मतलब बताऊं. मैं उन्हें मतलब बताने की कोशिश करता हूं, कहता हूं कि भारत माता का मतलब वह सब तो है ही जो वे बता रहे हैं, पर यही सब नहीं है. भारत माता का मतलब बहुत बड़ा है. भारत के पहाड़, भारत की नदियां, भारत के जंगल, हमें अनाज देने वाले भारत के खेत, सब हमें प्यारे हैं. पर अंततः जिस बात का कुछ अर्थ है, वे भारत के लोग हैं. इस विशाल देश में फैले उनके और मेरे जैसे लोग. यही लाखों–करोड़ों लोग भारत माता हैं, और भारत माता की जय का मतलब, इन सब लोगों की जय है. मैं उन्हें बताता हूं कि आप इस भारत माता का हिस्सा हैं. जैसे–जैसे यह बात उनकी समझ में आती जाती है, उनकी आंखें ऐसे चमकने लगती हैं, जैसे उन्होंने कोई बहुत बड़ी खोज करली हो.
(‘डिस्कवरी ऑफ इण्डिया’ से)
मई 2016