वसंत जीवन में पुलक और उल्लास का प्रतीक बनकर आता है और हमारे जीवन की त्रासदी यह है कि इस पुलक और उल्लास का अहसास कहीं खोता जा रहा है. ऐसा नहीं है कि हम उत्सव नहीं मनाते, ऐसा भी नहीं है कि कोशिश नहीं होती कि हम जीवन के अभावों और उसकी विसंगतियों को भुलाने की कोशिश करें, पर यह सचाई भी है कि जीवन में उल्लास अक्सर खोजना पड़ता है, और अक्सर यह उल्लास हाथों से फिसल-फिसल जाता है. लेकिन सचाई यह भी है कि इस उल्लास को तलाशने और हाथों से फिसल जाने से रोकने की कोशिशें ही जीवन को कुछ जीने योग्य बनाती हैं, इन्हीं कोशिशों से जीवन में कुछ रस आता है. यह रस ज़रूरी है, इसका होना ही जीने को अर्थ भी देता है और जीने की प्रेरणा भी. रागात्मकता और उल्लास का भाव ही प्रेरित करता है आने वाले कल को आज से बेहतर बनाने के लिए, प्रयत्नशील और आशावान बने रहने के लिए.
कुलपति उवाच
के.एम. मुनशी
अध्यक्षीय
सुरेंद्रलाल जी. मेहता
पहली सीढ़ी
प्रयाग शुक्ल
आवरण-कथा
सम्पादकीय
ध्रुव शुक्ल
विजय किशोर मानव
ओ वसंत! तुम्हें मनुहारता कचनार
डॉ. श्रीराम परिहार
पूरन सरमा
रीतारानी पालीवाल
व्यंग्य
गोपाल चतुर्वेदी
शरद जोशी
नोबेल कथा
सेमुएल बैकेट
धारावाहिक उपन्यास
नरेंद्र कोहली
शब्द-सम्पदा
विद्यानिवास मिश्र
आलेख
शंकरनकुट्टी पोट्टेकाट
हरिवंश
शम्भू दाज्यू ने मुझे नैचुरल पोएट कहा था
रमेशचंद्र शाह
‘सच्ची दोस्ती कागज़ से ही हो सकती है, वह भी कलम के द्वारा’
मेहरुन्निसा परवेज़
अपनी कहानी के किरदार जैसे ही थे कालिया
यश मालवीय
आंध्र प्रदेश की राजकीय मछली – कोर्रा मत्ता
डॉ. परशुराम शुक्ल
डॉ. दुर्गादत्त पाण्डेय
एक अद्भुत व्यक्तित्व थे डॉ. श्रीकांत
होमी दस्तूर
कथा
सुदर्शन वशिष्ठ
डॉ. पूरन सिंह
कविताएं
चित्रा देसाई
रघुवीर सहाय
नज़ार त़ौफीक कबानी
मंगेश पाडगांवकर
डॉ. कृपासिंधु नायक
समाचार
भवन समाचार
संस्कृति समाचार
आवरण चित्र
विन्सेंट वॉन गॉग