(यह जग-ज़ाहिर है कि मालवीयजी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के लिए किस तरह देश भर से भीख मांगी थी. गांधीजी ने तब उन्हें ‘सबसे बड़ा भिखारी’ कहा था. इस दान-यात्रा में 3 दिसम्बर 1911 को मालवीयजी लखनऊ पहुंचे थे. वहां जुटे बड़े भारी जलसे में चकबस्त नाम के एक शायर ने एक लम्बी कविता पढ़ी थी. लोग फड़क उठे. सिली हुई थैलियां खुल गयीं. प्रस्तुत हैं उस कविता के कुछ अंश)
इलाही कौन फ़रिश्ते हैं ये गदाए वतन!
स़फाए कल्ब से जिनके ये बज्म है रोशन
झुकी हुई है सबों की लिहाज़ से गर्दन।
हर एक ज़बां पे है ताज़ीम और अदब के सखुन।।
स्माफ़ें खड़ी हैं जवानों की और पीरों की।
खुदा की शान यह फेरी है किन फकीरों की।।
फकीर इल्म के हैं इनकी दास्तां सुन लो।
पयाम कौम का दुख-दर्द का बयाँ सुन लो।।
यही है वक्त अमीरों की पेशवाई का।
फकीर आये हैं कासा लिये गदाई का।।
तमाम दौलतें जाती लुटा के बैठे हैं।
तुम्हारे वास्ते धूनी रमा के बैठे हैं।।
सवाल इनका है तालीम का बने मंदिर।
कलश हो जिसका हिमाला से औज़ में बरतर।।
इसी उम्मीद पै ये घूमते हैं शामो-सहर।
सदा लगाते हैं राहे खुदा में यह कहकर।।
वह खुदगरज है जो दौलत पै जान देते हैं।
वही है मर्द जो विद्या का दान देते हैं।।
यह है तरक्किए कौमी के वास्ते अक्सीर।
बहें उलूम की गङ्गा पियें गरीब-अमीर।।
तुम्हारी कौम से दौलत हुई है यो मादूम।
कि अब तरसते हैं पढ़ने को सैकड़ों मासूम।।
वह खुद तरसते हैं, मां-बाप उनके रोते हैं।
तुम्हारी कौम के बच्चे तबाह होते हैं।
ये बेगुनाह उसी कौम के है लखते-जिगर।
कि जिसने तुमको भी पाला है सूरते मादर।।
गुनाह कौम के धुल जांय अब वह काम करो।
मिटे कलंक का टीका वह फ़ैज आम करो।।
फिज़ा की जहल को बस दूर से सलाम करो।
कुछ अपनी कौम के बच्चों का इंतजाम करो।
ये सब कहें कि है ज़िदा ये कौम गैरतदार।
है इसके दिल में बुज़ुर्गों की आबरू का बकार।।
तुम्हारे वास्ते लाज़िम है मालवी का भी पास।
कि जिसकी ज़ात से अटकी हुई है कौम की आस।।
लिया गरीब ने घर बार छोड़कर बनवास।
जो यह नहीं है तो कहते हैं फिर किसे संन्यास।।
तमाम उम्र कटी एक ही करीने पर।
गिराया अपना लहू कौम के पसीने पर।।
इसी के हाथ में है कौम का संवर जाना।
तुम्हारी डूबती कश्ती का फिर उभर जाना।।
जो तुमने अब भी न दुनिया में काम कर जाना।
तो यह समझ लो कि बेहतर है इसमें मर जाना।।
अगर हो मर्द न यों उम्र रायगां काटो।।
गरीब कौम के पैरों की बेड़ियां काटो।
ज़रा हमैयतो गैरत का हक अदा कर लो।
फ़कीर कौम के आये हैं, झोलियां भर दो।।
यहां से जांय तो जांय यह झोलियां भर कर।
लुटायें इल्म की दौलत तुम्हारे बच्चों पर।।
मार्च 2016