पूर्णत्व की ओर

कुलपति के. एम. मुनशी

कुलपति के. एम. मुनशी

जाति-व्यवस्था या अन्य कोई कड़ी व्यवस्था, जो किसी भी व्यक्ति को उसके स्वभाव का पूरा विकास करने का अवसर न दे, वह गीता के विपरीत आचरण करती है. ऐसा प्रतिबंध प्राकृतिक क्रम के विपरीत है. ऐसी व्यवस्था व्यक्ति का नाश कर देगी और अंत में स्वतः नष्ट हो जाएगी. अतएव श्री कृष्ण का संदेश ऐसी जीवन शक्ति देता है जिसके प्रभाव से चातुर्वर्ण्य की व्यवस्था को पीढ़ी-दर-पीढ़ी नये सिरे से रचकर संगठित किया जा सकता है. चातुर्वर्ण्य एक सामाजिक पिरामिड है जिसकी चोटी पर सात्विक मनुष्य खड़ा है. अन्य लोगों को भी चोटी पर चढ़ने की स्वतंत्रता है. मनुष्य में उत्साह और योग्य संकल्प-बल हो तो कुछ कहना नहीं. इन दो कमियों के सिवा पहाड़ पर चढ़ने में कोई प्रतिबंध नहीं. आनुवांशिक संस्कार प्रणाली और समाज के वातावरण ने जो नैसर्गिक या कृत्रिम अंतराल खड़े किये हों, उन सबको भेदकर योग का यह मार्ग उनसे पार हो जाता है. अतः गीता का बनाया हुआ योग प्राप्त करने में जन्म, वातावरण या संयोग मनुष्य के आड़े नहीं आते. यदि वह ऊंचा चढ़ने को तैयार हो तो ज्ञान का प्रकाश उसे मिलेगा. इस सत्य की खोज करने में उसकी संकल्प शक्ति का बल बढ़ेगा. उसमें  गतिशील एकता जागेगी, अपूर्णता के बंधन टूट जाएंगे. इस प्रकार प्रत्येक स्वभाव पूर्णत्त्व की ओर बढ़ेगा.

(कुलपति के. एम. मुनशी भारतीय विद्या भवन के संस्थापक थे)