नैसर्गिक क्रिया

कुलपति के. एम. मुनशी

कुलपति के. एम. मुनशी

व्यक्तिगत जीवन में सौंदर्य के चरणों में शरणागति ली हो तो उससे वस्तुमात्र में परम सौंदर्य को तथा परम सौंदर्य में वस्तुमात्र को देखने वाली शरणागति निष्पन्न होना नैसर्गिक क्रिया है.

कला और जीवन में सौंदर्य के प्रति चाह, वासना से भिन्न है. वासना के मानी है राग. राग भोगेच्छा को जन्म देता है, वह स्वतः शक्तिक्षय में खप जाना चाहता है और उसका फल अतृप्ति होता है. दूसरी ओर, सौंदर्य के प्रति इस चाह का ध्येय अति तृप्ति नहीं, किंतु आनंद है ऐसा आनंद जो किसी अन्य वस्तु का साधन नहीं है, किंतु स्वतः ही स्वतंत्र रूप से साध्य है.

अंतर में बसने वाली भावना- फिर चाहे वह अपोलो बेलबेडियर की प्रतिमा, ताजमहल या शाकुंतल हो, अथवा गृह या गृहिणी हो, या कोई वीर पुरुष या साधु-संत हो, या एकाध आदर्श हो- की सुंदरता, यदि उस मनुष्य की, पूर्णता के लिए, चाह से मेल खाती हो; तो उससे आनंद कि निष्पत्ति होती है. यह आनंद, वासना से कलुषित हुआ नहीं होता, और उसकी अति तृप्ति कभी नहीं होने पाती.

पुरतत्त्व के प्रति चाह जब राग, क्रोध और भय से परे हो जाय, तब यह एकराग अधिक सघन होता, और सुंदरतर, विशुद्घ तथा विशेष जीवंत बन जाता है. ऐसा करते हुए अंत में मनुष्य सौंदर्य रूपधारी ऐसे अनंत अपरिमित तत्त्व के चरणों में स्वार्पण करके उसकी शरण स्वीकृत करता, और उसके चिंतन में आनंद अनुभव करने लगता है.

 (कुलपति के. एम. मुनशी भारतीय विद्या भवन के संस्थापक थे)

(जनवरी 2014)

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