नवम्बर 2011

Nov 2011 Cover 1-4 FNLआपने कभी तितली को किताब के पन्नों में समेटा है? मर जाती है जब, तब सिमट पाती है तितली. ज़रूर समेटा होगा मैंने बचपन में किसी तितली को. इसीलिए, उस दिन मेरे कमरे में ढेरों तितलियां उड़ी तो थीं, पर हाथ नहीं आयी मेरे एक भी. बड़ों से शायद इसीलिए नाराज़ होती हैं तितलियां कि बड़े नासमझी में नहीं, समझ-बूझकर किताबों में समेटना चाहते हैं तितली को. बचपन में नासमझी समेटती है तितलियों को. मैंने भी नासमझी में किया होगा ऐसा. नासमझी में अपराध नहीं होता, भूल होती है. सज़ा भूल की भी मिलती है कभी-कभी. पर ऐसी सज़ा? यह कैसा शाप है जो तितलियों के साथ खेलने-खिलने को भी भुला देता है?

शब्द-यात्रा

मुग्ध अब मूढ़ नहीं रहा
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

क्यों मधुर
रवींद्रनाथ ठाकुर

आवरण-कथा

सम्पादकीय
अबोध बचपन को नहीं लौटा पाये तो…
सूर्यबाला
बचपन – स्मृतियों का सॉफ्टवेयर
अनूप सेठी
हिंसक होता बाल-मन
चित्रेश
बाल मजदूरी – एक सामाजिक अभिशाप
सरोज त्रिपाठी
हमारी यह खूबसूरत दुनिया
जवाहर लाल नेहरू
शिशु वेद
कुबेरनाथ राय

मेरी पहली कहानी

किन्नरी
ज्योत्स्ना मिलन

आलेख

साहित्यपुर का संत
प्रेम जनमेजय
मेरा वह लेख लगभग हिंसात्मक विद्रोह था
श्रीलाल शुक्ल
इसने मेरी लेखकीय ज़िम्मेदारी और अधिक बढ़ा दी है
अमरकांत
दहकती आग पर नंगे पांवों का सफ़र
चित्रा मुद्गल
जब फ़ैज ने हथियार डाल दिये
अहमद नदीम कासिमी
अनिश्चय की निश्चित आवाज़
हरिवंश राय बच्चन
केरल का राज्यपुष्प – अमलतास
डॉ. परशुराम शुक्ल
बुद्घि के लिए प्रेरणा मांगने वाला गायत्री-मंत्र
विनोबा भावे
सफ़ेदपोश घसियारों का सौंदर्यबोध
रमेश जोशी
छछिया भर छाछ पे मां की याद
श्याम विमल
लगातार हांट करता एक उपन्यास
ज्ञान चतुर्वेदी
किताबें

व्यंग्य

जीवन का एक सुखी दिन
श्रीलाल शुक्ल
उर्फ रोशन लाल
हिमांशु जोशी

धारावाहिक उपन्यास

कंथा (अठारहवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कविताएं

खैयाम की रुबाइयां
अनुवाद –  मैथिलीशरण गुप्त
खैयाम की रुबाइयां
अनुवाद – हरिवंशराय बच्चन
चंदन की या चिता काठ की
ऋषि कुमार मिश्र
दो मराठी कविताएं
मंगेश नारायणराव काळे

कहानियां

फ़र्क
अमरकांत
दूसरा सिरा
नीरा परमार

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