“दृश्यांतर” पत्रिका के बहाने धीरेन्द्र अस्थाना की आत्मकथा पर गोष्ठी

Drishyantar - Ravincra

“चार अंकों में ही इतनी लोकप्रिय होने वाली दृश्यांतर पत्रिका शायद हिंदी की पहली ऐसी साहित्यिक पत्रिका है, जो हर तरह से बहुत अच्छी सामग्री देने के साथ-साथ रचनाधर्मिता के मानदंडों पर खरी उतरती है”- यह उद्गार सुप्रसिद्ध रचनाकार सुधा अरोड़ा ने मणिबेन नानावटी महिला महाविद्यालय, मुंबई में दिनांक 26 फरवरी को दृश्यांतर के लोकार्पण कार्यक्रम में व्यक्त किए। इसके लिए उन्होंने दृश्यांतर पत्रिका के संपादक श्री अजित राय को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि साहित्य, मीडिया और संस्कृति पर केन्द्रित ऐसी पत्रिका की बड़ी आवश्यकता थी जो संतुलित और श्रेष्ठ सामग्री का प्रकाशन करे। नानावटी महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. हर्षदा राठौड़ ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि दृश्यांतर हमारे समय और समाज की महत्वपूर्ण पत्रिका है जिसके लिए श्री अजित राय को जितना धन्यवाद दिया जाए कम है।                             

इस अवसर पर दृश्यांतर के संपादक श्री अजित राय ने पत्रिका के प्रकाशन की प्रक्रिया के संबंध में बताते हुए कहा कि यह देश की पहली पत्रिका है जो लेखकों से आग्रहपूर्वक रचनाएँ लिखवाती है। इसमें प्रकाशित प्रत्येक रचना लेखक से कहकर लिखवाई गई है, इसलिए हमें अच्छी रचनाएँ प्राप्त हो पाईं। इसके उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि दृश्यांतर श्रेष्ठ रचनाधर्मिता और वैचारिकता के प्रकाशन के लिए प्रतिबद्ध है।       

दृश्यांतर में प्रकाशित धीरेन्द्र अस्थाना की आत्मकथा “सतह से उठता आदमी” पर बोलते हुए सुधा अरोड़ा ने कहा कि धीरेन्द्र ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किए हैं और बड़ी बीहड़ परिस्थितियों में रहते हुए अपने अंदर के इंसान को बचाए रखा है। उन्होंने यह भी कहा कि मेरे लेखन को आगे बढ़ाने में भी धीरेन्द्र अस्थाना का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस अवसर पर कवि-कथाकार हरि मृदुल ने कहा कि धीरेन्द्र अस्थाना की आत्मकथा उनके अंदर के रचनाकार के जीवन को बड़ी बेबाकी से प्रकट करती है। परिवार, पिता, जीवन की विकट परिस्थितियों ने भी उनके रचनाकार को मरने नहीं दिया बल्कि उन्हें लड़ने को और भी प्रेरित किया।

रवीन्द्र कात्यायन ने कहा कि ‘सतह से उठता आदमी’ धीरेन्द्र जी की ज़िन्दगी का बेहद ईमानदार बयान है, जिसमें उनकी जिजीविषा बड़ी शिद्दत से उभरकर आई है। अपने सम्मान की रक्षा के लिए पक्की नौकरी को ठोकर मार देने वाला रचनाकार धीरेन्द्र अस्थाना ही हो सकता है, जबकि जीवन की परिस्थितियाँ इसकी इज़ाज़त नहीं देतीं।

इस अवसर पर रचनाकार आलोक भट्टाचार्य ने कहा- धीरेन्द्र को मैं बहुत गहराई से जानता हूँ। धीरेन्द्र जितने अच्छे लेखक हैं उतने अच्छे मनुष्य भी। उनकी रचनाएँ हमारे समय की बहुत महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। कथाकार संतोष श्रीवास्तव ने कहा कि यह आत्मकथा बड़े महत्वपूर्ण समय में प्रकाशित हुई है जब सारे समय और समाज में एक अस्थिरता का दौर है। यह रचना मानवीय संबंधों में हमारा विश्वास जगाती है। चिंतन दिशा के संपादक श्री हृदयेश मयंक ने कहा कि धीरेन्द्र जी की आत्मकथा उनकी रचनायात्रा को प्रकट करती है जिसमें उनकी व्यक्तिगत और सामाजिक प्रतिबद्धता गहराई से दिखाई दिखाई देती है। वहीं पर ललिता अस्थाना ने कहा कि धीरेन्द्र ने बहुत दिन से कुछ नहीं लिखा था, इस आत्मकथा ने उनके अंदर के लेखक को फिर से जगा दिया है। फ़िल्म लेखक श्री संजय मासूम ने धीरेन्द्र अस्थाना को बधाई देते हुए कहा कि उनकी रचनाऎँ समाज की ज़रूरत हैं। 

इस कार्यक्रम में नाट्यकर्मी श्री रमेश राजहंस, श्री संजीव निगम, पत्रकार अनिल अत्रि, रासबिहारी पाण्डेय, नेहा शरद, सोनी किशोर सिंह, अभिषेक कुमार, आकाश तिवारी आदि रचनाकार उपस्थित थे।


रिपोर्ट: रवीन्द्र कात्यायन

                    

 

 

 

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