जुलाई 2012

संस्कृति क्या है? इस प्रश्न का सीधा-सा उत्तर हैः वह सब जो मानवीय जीवन को उच्चतर मूल्यों-आदर्शों से जोड़ता है, उसे संस्कारित करता है, वही सब संस्कृति को भी परिभाषित करता है. संकीर्णताओं से उबरकर एक व्यापक फलक पर जीवन की सार्थकताओं को समझने की कोशिश ने ही मनुष्य को संस्कारित किया है और यही संस्कारित स्थिति संस्कृति है. लेकिन संस्कृति  यह स्थिति मात्र नहीं है, यह जीवन के बेहतर होने, उसे बेहतर बनाने की प्रक्रिया भी है और साधन भी.
हमारे आधुनिक जीवन की एक विसंगति यह भी है कि हम कुल मिलाकर एक आस्थावान जीवन जीने के बजाय एक यांत्रिक-सा जीवन जी रहे हैं और इसी के चलते जीवन में एक अनास्था और अर्थहीनता घर करती जा रही है. एक उपभोक्तावादी अपसंस्कृति हावी होती जा रही है हम पर. यही है वह सांस्कृतिक संकट जो मनुष्य को, मनुष्य-जीवन को मानवीय मूल्यों से विरत कर रहा है. अपने अपने टापू बना लिये हैं हमने. वैयक्तिकता और सामूहिकता दोनों ही के अर्थों में हम अपने इन टापुओं की सीमाओं के बंदी बनते जा रहे हैं. यदि इस समूह की परिभाषा में मनुष्य मात्र आ जाते, तब तो कोई संकट नहीं था, लेकिन विडम्बना यह है कि स्वयं को मनुष्य कहते हुए भी हम जातियों, वर्णों, वर्गों में बंटकर एक विभाजित जीवन जीने के लिए जैसे अभिशप्त हो रहे हैं.

 

 

कुलपति उवाच

व्यक्तित्व का विकास
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी

शब्द-यात्रा

आंख से ‘चश्मा’ का दीदार
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

आमंत्रण
नबारुण भट्टाचार्य

आवरण-कथा

सम्पादकीय
संस्कृति के आयाम
विजय किशोर मानव
सभ्यताओं के संकट, संस्कृति की बलि
गंगा प्रसाद विमल
संस्कृति है क्या?
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
हमारे पास न पुराने आदर्श हैं न नये
जवाहरलाल नेहरू
भारतीय संस्कृति की देन
हजारीप्रसाद द्विवेदी

मेरी पहली कहानी

फैसला फिर से
मधु कांकरिया

साल पहले

एक अनोखा सपना
वि स खांडेकर

आलेख

कुछ मौलिक योगदान ही सत्साहित्य की कसौटी है
डॉ रामशंकर द्विवेदी
अकेला छूट गया था नीली रोशनी के देश में
वीरेंद्र कुमार जैन
विराट आकाश वाला धार्मिक मन
जे. कृष्णमूर्ति
मेरी मां ने मुझे प्रेमचंद का भक्त बनाया
मुक्तिबोध
गो, किस द वर्ल्ड
सुब्रतो बागची
एक सदेह गीत
डॉ बुद्धिनाथ मिश्र
देवताओं का वृक्ष- देवदार
डॉ परशुराम शुक्ल
एक नयी उड़ान
मंजुल भारद्वाज
सच्चा कवि कौन?
काका कालेलकर
किताबें

महाभारत जारी है  (भाग-2)

इंद्रप्रस्थ ऐसे ही बसते हैं !
प्रभाकर श्रोत्रिय

व्यंग्य

अपना व्यंग्य तुलवाइये
सत्यपाल सिंह ‘सुष्म’

धारावाहिक उपन्यास

कंथा (पच्चीसवीं किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कविताएं

दो कविताएं   
हृदयेश भारद्वाज
गीत   
राजनारायण चौधरी
मैं गीत…   
चंद्रसेन विराट
दो कविताएं   
दामोदर खड़से

कहानियां

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ममता कालिया
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डॉ. परदेशी वर्मा

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चरन शर्मा