चोला की कमीज़ और कुरता

आनंद गहलोत

 संस्कृत साहित्य में उत्तरीय का उल्लेख है, कमर में पहना जानेवाला वत्र, अधोवत्र या अंतरीय का उल्लेख है और उल्लेख है चोल(चोलः) का.  संस्कृत अमर कोष में (चोलः) शब्द है, लेकिन ‘चोला’ या ‘चोली’ नहीं. इस पुल्लिंग शब्द का अर्थ है- छोटी जैकेट, अंगिया. अंगिया के लिए पुल्लिंग शब्द ‘चोल’ हिंदीवालों को अखरा होगा. उन्होंने मरदाना शब्द ‘चोल’ का ज़नाना ‘चोली’ बना दिया.

हिंदीवालों ने ही नहीं, संस्कृतवालों ने भी, लगता है, ‘चोली’ शब्द आज से कई सौ वर्ष पूर्व पूरी तरह स्वीकार कर लिया था, क्योंकि 1890 में प्रकाशित आप्टे के संस्कृत कोश में यह शब्द है.  हिंदी का ‘अंगिया’ शब्द हमें प्राकृत भाषा से विरासत में मिला और प्राकृत को यह संस्कृत शब्द ‘अंगिका’ से मिला था. ‘अंगिया’ के उच्चारण में ‘अंगिका’ की तुलना में कम परिश्रम होता है. बोलनेवालों के आलस्य के कारण इस तरह का ध्वनि परिवर्तन मामूली बात है.

‘चोली’ मरदों के काम नहीं आ सकती थी, उन्होंने उसी के आधार पर नया शब्द गढ़ा ‘चोला’. वे कुरते के ढंग के पहनावे को चोला कहने लगे– बहुत लम्बे और ढीले-ढाले कुरते को.

तुर्की भाषा ने मुगलों के माध्यम से भारतीय भाषाओं को चोला का समकक्ष शब्द दिया ‘चूग़ा’ (पैरों तक लटकता ढीला पहनावा). हमारे पूर्वजों ने ‘चूग़ा’ शब्द तो अपना लिया  लेकिन उसे ‘चोला’ जैसा रूप देने के लिए ‘चोग़ा’ कर दिया.

हम ‘कमीज़’ और ‘कुरता’ दोनों ही उधार के पहनते हैं. ‘कमीज़’ शब्द के लिए हमने अरबी भाषा के ‘क़मीस’ को ‘क़मीज़’ बना डाला, मराठी ने ‘ख़मीस’. ‘कमीज़’ के लिए फारसी शब्द ‘पैरहन’ और ‘जामा’ यहां लोकप्रिय नहीं हो पाये. ‘पैराहन’ संस्कृत के परिधान का ईरानी रूप है. हिंदी का ‘परहन’, ‘पहनावा’ और ‘पहनना’ भी ‘परिधान’ की वंश परम्परा के हैं.

हिंदी के ‘चोला’ शब्द ने अपना चोला तब बदल दिया जब इसका नया अर्थ विकसित हुआ शरीर, बदन, तन. साधु, संतों, फ़कीरों के संदर्भ में हम कहते हैं- ‘उन्होंने अपना चोला छोड़ दिया’ (उन्होंने अपने प्राण त्यागे). यहां चोला (शरीर) आत्मा के लिए जीर्णवत्र की तरह हो गया.

अब कुरते और क़मीज़ की जगह धीरे-धीरे ‘शर्ट’ और ‘बुशशर्ट’ शब्द लेते जा रहे हैं. आपको यह सच अटपटा ज़रूर लगेगा कि ‘शर्ट’ ‘स्कर्ट’ शब्द की वंश परम्परा का है. अंग्रेज़ों के पूर्वज एक समय ‘शर्ट’ को ‘स्कर्ट’ कहते थे.

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