मधुर मनोहर अतीव सुंदर, यह सर्व विद्या की राजधानी।
यह तीनों लोकों से न्यारी काशी।
सुज्ञान धर्म और सत्यराशी।।
बसी है गंगा के रम्य तट पर, यह सर्व विद्या की राजधानी।
नये नहीं हैं ये ईंट पत्थर।
है विश्वकर्मा का कार्य सुंदर।।
रचे हैं विद्या के भव्य मंदिर, यह सर्वसृष्टि की राजधानी।
यहां की है यह पवित्र शिक्षा।
कि सत्य पहले फिर आत्म रक्षा।।
बिके हरिश्चंद्र थे यहीं पर, यह सत्य शिक्षा की राजधानी।
वह वेद ईश्वर की सत्यवानी।
बने जिन्हें पढ़ के ब्रह्म ज्ञानी
थे व्यास जी ने रचे यहीं पर, यह ब्रह्म विद्या की राजधानी।
वह मुक्ति पद को दिलाने वाले।
सुधर्म पथ पर चलाने वाले।
यहीं फले फूले बुद्ध, शंकर, यह राज-ऋषियों की राजधानी।
सुरम्य धारायें वरुणा अस्सी।
नहायें जिनमें कबीर, तुलसी।।
भला हो कविता का क्यों न आकर, यह वाग् विद्या की राजधानी।
विविध कला अर्थशास्त्र गायन।
गणित खनिज औषधि रसायन।।
प्रतीचि-प्राची का मेल सुंदर, यह विश्व विद्या की राजधानी।
यह मालवीयजी की देशभक्ति।
यह उनका साहस, यह उनकी शक्ति।।
प्रकट हुई है नवीन होकर, यह कर्म वीरों की राजधानी।
मधुन मनोहर अतीव सुंदर, यह सर्व विद्या की राजधानी।।
मार्च 2016