ज्ञान का सूर्य जिनके हृदय में चमक रहा हो, वे वाद और वितंडा में पड़ना पसंद नहीं करते. पहाड़ की चोटी पर खड़े मनुष्य को नीचे के सभी पेड़-पौधे एक-से ही नजर आते हैं. ब्राह्म समाज के प्रसिद्ध उपदेशक प्रतापचंद्र मजूमदार एक दिन महर्षि देवेंद्रनाथ ठाकुर के यहां गये. महर्षि की मेज पर उन्होंने ईसाई धर्म की अनेक पुस्तकें रखी देखीं. उनका खयाल था कि ईसाइयत के प्रति महर्षि के मन में तिस्कार है. अतः वे बहुत विस्मित हुए और उन्होंने पुस्तकों की ओर इशारा करके महर्षि से पूछा- ‘ये आपकी मेज पर कैसे आयीं?’
उत्तर मिला- ‘जब मैं नीचाई पर घूम रहा था, तब मुझे जगह-जगह टेकरियां और ऊंची-नीची जमीन दिखती थी. परंतु अब मैं कुछ ऊपर चढ़ गया हूं, इसलिए नीचे का क्षेत्र मुझे एक समतल मैदान जैसा दिखाई देता है और एक ही मालिक की देन-जैसा लगता है.’
( फरवरी 1971 )