♦ आनंद गहलोत >
हिंदी के महान कोशकारों के ज्ञान का आदर करते हुए इसे स्वीकार करने में हमें संकोच नहीं होना चाहिए कि आराम के हिंदी में मौजूदा सुख-चैन अर्थ की प्रेरणा हमें संस्कृत के बजाय फ़ारसी से अधिक मिली है. इस शब्द की मदद के बिना न तो हम आराम से ज़िंदगी गुज़ार सकते हैं और न आराम ही कर सकते हैं. आराम से (धीरे-धीरे फुर्सत से) काम करने के लिए भी ‘आराम’ हमारे जीवन के लिए अपरिहार्य (लाज़िमी) है.
जैसे फ़ारसी ‘आरम’ ने हिंदी-उर्दू व अन्य भारतीय भाषाओं को कई शब्द दिये, ठीक उसी तरह संस्कृत ने भी कभी ‘रम्’ धातु से ‘रम्य’, ‘सुरम्य’, रमणीय शब्द दिये.
संसार में सारे सुखों की जननी के लिए ‘रमणी’ शब्द भी ‘आराम’ शब्द की जननी ‘रम्’ ने दिया. “भोगः को रमणी विना” -रमणी (त्री) के बिना भोग ही क्या, कैसा? नारी के बिना जीवन नीरस, निरानंद के अलावा कुछ नहीं.
‘आराम’ अर्थवाला एक और संस्कृत शब्द हिंदी में इस्तेमाल होने लगा है; लेकिन ‘आराम’ या ‘विश्राम’ अर्थ में नहीं. यह शब्द है ‘विश्रांत’ संस्कृत में ‘विश्रात’ का अर्थ है ‘विश्राम किया हुआ’, लेकिन हिंदी में यह शब्द ‘थका हुआ’ अर्थ में इस्तेमाल होना शुरू हो गया है जो कि ‘श्रम’ (मेहनत) शब्द परिवार के ‘श्रांत’ का है जबकि ‘विश्रांत’, ‘श्रांत’ का ठीक विपरीत, उल्टा है, जैसे ‘विफल’ उल्टा है ‘फल’ का. हिंदी बोलनेवालों ने ‘श्रांत’ ‘विश्रांत’ का भेद समाप्त कर दिया है. थके हुए लोग विश्राम करते ही हैं; इसलिए दोनों शब्दों के अर्थ भी आपस में एक दूसरे में समा गये हैं.
यह कहावत सच्ची है या झूठी कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है; लेकिन कुछ शब्द अपने जैसे शब्दों को देखकर अपना रंग ज़रूर बदलते हैं. संस्कृत का ‘दुःख’ हिंदी में ‘सुख’ को देखते-देखते विसर्गविहीन ‘दुख’ हो गया. इससे पहले वह पालि-प्राकृति में ‘दुक्ख’ हो चुका था. और तो और ‘स्वर्ग’ को देखते-देखते संस्कृत शब्द ‘नरक’ हिंदी में ‘नर्क’ बनता जा रहा है.
एक समय था कि धार्मिक ग्रंथों को पढ़ते समय उनका अशुद्ध उच्चारण करनेवालों को डराया जाता था कि इस भूल, अज्ञान, पाप के लिए उन्हें नरक मिलेगा.
अगर आज भगवान ऐसा न्याय या अन्याय करने लगें तो स्वर्ग हिंदी भाषियों से खाली हो जायेगा और गगज्यादा को नरक या नर्क में ही जाना पड़ेगा.