आनंद दो!

एक सूफी फकीर की ख्याति सुनकर एक व्यक्ति ज्ञान-प्राप्ति के लिए उसके पास पहुंचा. वहां उसने देखा कि एक हाथ में टोकरी उठाये संत दूसरे हाथ में पक्षियों को दाना चुगाने में व्यस्त थे. वह मजे से चुगा रहे थे, पक्षी मजे से चुग रहे थे. व्यक्ति ने देखा, दाना चुगाते हुए संत बच्चों की तरह खुश हो रहे थे. संत पक्षियों को दाना चुगाते रहे. वह व्यक्ति देखता रहा. बहुत देर तक संत ने उसकी तरफ देखा ही नहीं. परेशान होकर वह व्यक्ति संत के निकट पहुंचा. संत ने बिना उसकी ओर देखे, टोकरी उसे थमा दी और कहा, ‘अब तुम पक्षियों के साथ आनंद लो.’ आध्यात्मिक साधना का रहस्य जानने के लिए संत के पास आया व्यक्ति हैरान था. संत उसकी परेशानी समझ गये. बोले, ‘स्वयं की परेशानियों को भुलाकर जीव मात्र को आनंद पहुंचाने का प्रयत्न ही जीवन के आनंद का रहस्य है, और हर सिद्धि का भी. यदि तुम स्वयं आनंद पाना चाहते हो तो दूसरों को आनंद देना सीखो. यह साध लोगे तो समझ लो साधना पूरी हो गयी. आध्यात्मिक जीवन का अर्थ ही दूसरों का सुख बांटना है. तभी परमात्मा का वैभव बरसता है!’

(जनवरी 2014 )

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