गांधीजी के साये में पनपने वाले देश के नेतृत्त्व में तीन नाम बड़ी प्रमुखता से लिए जाते हैं- पहला नाम जवाहरलाल नेहरू का है, जिन्हें गांधीजी ने अपना वारिस घोषित किया था; दूसरा वल्लभभाई पटेल का है जिन्होंने स्वतंत्र भारत को एक तरह से आकार दिया; और तीसरा नाम कनैयालाल माणिकलाल मुनशी का है जिन्होंने स्वतंत्र भारत में सांस्कृतिक एकता एवं समृद्धि की आवश्यकता को महसूस करते हुए भारतीय विद्या भवन जैसी संस्था की नींव रखी थी. ये तीनों गांधीजी के भक्त थे. यह वर्ष के. एम. मुनशी की 125 वीं जन्म-जयंती का वर्ष है. मुनशी एक बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिन्होंने जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा-योग्यता का लोहा मनवाया. गुजराती साहित्य के इतिहास का तो एक पूरा कालखंड ही उनके नाम को समर्पित था. वे एक मेधावी वकील भी थे और संविधानविद भी. भारत के संविधान को बनाने में उनकी भूमिका को देश के इतिहास में बड़े आदर और स्नेह से याद किया गया है. लेकिन शायद मुनशी की सबसे बड़ी देन भारतीय विद्या भवन है, जो पिछले पचहत्तर वर्षों से देश की सांस्कृतिक पहचान और अस्मिता का पर्याय बना हुआ है.
कुलपति उवाच
राष्ट्रीय एकता का आधार
के. एम. मुनशी
शब्द-यात्रा
‘श्री’ का देवत्व और मनुष्यत्व
आनंद गहलोत
पहली सीढ़ी
मैं भारत हूं
स्वामी रामतीर्थ
आवरण-कथा
सम्पादकीय
श्रेष्ठता की कई-कई चोटियां छूने वाला नायक
होमी दस्तूर
कुलपति और महात्मा
वी. शिवारामकृष्णन
‘भारत के सच्चे सपूत’
प्रणव मुखर्जी
वैयक्तिक स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के प्रबल पक्षधर
मीरा कुमार
भारतीय नवजागरण के तट का एक सीप
रामधारी सिंह ‘दिनकर’
विलक्षण सर्जकता के धनी
रघुवीर चौधरी
बुलंद रचनाकार
दिनकर जोशी
मैं, ‘भवन’ और मेरे भीतर का ‘भवन’
पी.एम. संथनगोपाल
परेशान दिमागों को पोषक विचार देने वाले एस. रामकृष्णन
वी. एन. नारायणन
एक अग्नि स्तम्भ पर टिकी निगाह
के.एम.मुनशी
कनैयालाल मुनशी की जीवन-यात्रा
मेरी पहली कहानी
घाव
लक्ष्मेंद्र चोपड़ा
महाभारत जारी है
अर्जुन-लक्ष्य
प्रभाकर श्रोत्रिय
धारावाहिक आत्मकथा
आधे रास्ते (सातवीं किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी
आलेख
भारत उठ रहा है मानव जाति के लिए
श्री अरविंद
एक पन्ने के अखबार के लिए पूरे पांच सौ रुपये !
मनमोहन गुप्त
दुःख को अपना गुरु बनायें
दुर्गादत्त पांडेय
हिमालय के धर्म को पहचानना होगा
अनुपम मिश्र
‘यही तो वक्त है सूरज तेरे निकलने का…’
कमलेश्वर
आओ, किताब और कलम उठाएं मलाला यूसुफज़ई
वह रात… वह सुबह…
सुशीला नरूला
ऐखाने शेष : ऐखाने अंतिम
बल्लभ डोभाल
तोता सिर्फ रंगीलाल के पास ही नहीं था
सुधीर निगम
किताबें
कहानी
मैं भी तो छोटा ही हूं न!
भगवान वैद्य ‘प्रखर’
कविता
पेड़
लीलाधर जगूड़ी
वीणांत
सत्येंद्र चतुर्वेदी
समाचार
भवन समाचार
संस्कृति समाचार