अक्टूबर 2010

Oct 2010 Cover-fnl

पता नहीं क्या सोचकर हमारे संविधान-निर्माताओं ने इस देश को ‘इंडिया दैट इज़ भारत’ यानी ‘इंडिया जो कि भारत’ कहा होगा, पर आज़ादी के 62 साल बाद आज हमारा देश इंडिया और भारत में बंट गया है. इंडिया यानी वह हिस्सा जो चमक रहा है– इस हिस्से में महानगर हैं, आकाश को छूनेवाली इमारतें हैं, राजमार्ग हैं, विदेशों से होड़ लेने वाले मॉल हैं, मल्टीप्लेक्स हैं. यह हिस्सा उन बीस प्रतिशत भारतीयों का है, जो आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं और जिनकी सम्पन्नता लगातार बढ़ती जा रही है. इस हिस्से में वे करोड़पति रहते हैं जिनकी संख्या और पूंजी लगातार बढ़ रही है. यह हिस्सा विकसित राष्ट्रों के वैभव से टक्कर लेने की कोशिश करता रहता है. देश की कथित रूप से लगातार सुधरती अर्थव्यवस्था का परिणाम इसी इंडिया के हिस्से में आया है. दूसरा हिस्सा भारत का है, जहां देश की अस्सी प्रतिशत आबादी बसती है. यह हिस्सा अंधेरें में जी रहा है. इस हिस्से में भूख है, बेकारी है, जीने के लिए निरंतर संघर्ष करते रहने की एक विवशता है. यह भारत है.

शब्द-यात्रा

‘बाबूजी’ की जन्मकुंडली
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

प्रार्थना
मो. क. गांधी

आवरण-कथा

एक राष्ट्रीय दायित्व
सम्पादकीय
शाइनिंग इंडिया के बीच कसकता भारत
रमेश नैयर
भारत की विस्मृति ही इंडिया की सफलता की बुनियाद
अच्युतानंद मिश्र
नये ज़माने की नयी क्रांति
आचार्य राममूर्ति
अगरिया गांव क्यों नहीं जाते
रवींद्र स्वप्निल प्रजापति

मेरी पहली कहानी

झांसी नहीं दूंगी
शीला इंद्र

आलेख

साहित्य जीवन को परिभाषित करता है
कुंवर नारायण
निराशा के कर्त्तव्य
डॉ. नंद चतुर्वेदी
हिंदी के खिलाफ़ अंग्रेज़ी की मार्केटिंग
प्रभु जोशी
‘पहाड़ पर मेरा खेत है, हर वर्ष फसल उगाती हूं’
विजय कुमार
झारखंड का राज्य-पुष्प – पलाश
डॉ. परशुराम शुक्ल
अमृता प्रीतम –  तारीखसाज़ शख्सियत
फ़खर ज़मान
कनाडा में पतझड़
प्रो. इंदु रायज़ादा
इस शिक्षा से हम मनुष्य नहीं बनते
महात्मा गांधी
…वरना ये पंख थे गगन वाले
सत्यनारायण सिंह
किताबें

व्यंग्य

नेता जी ने किया सच का सामना
राज चड्ढा

धारावाहिक उपन्यास

कंथा (छठी किस्त)
श्याम बिहारी श्यामल

कहानी

सेंधमारी
सतीश जायसवाल
साड़ी
राजेंद्र श्रीवास्तव ‘रंजन’

कविताएं

तीन कविताएं
नारायण सुर्वे
गज़लें
विजय बहादुर सिंह
अंतरिक्ष-विजय
डॉ. गोपालदास ‘नीरज’

समाचार

संस्कृति समाचार
भवन समाचार