फ़रवरी 2014

 Feb 2014 Cover - 2विज्ञान ने जहां हमारे लिए जीवन की सुविधाएं जुटायी हैं वहीं उनके अविवेकी उपयोग ने जीवन के लिए खतरा भी खड़ा कर दिया है. वह खतरा अटॉमिक एनर्जी वाला भी है और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से उपज रहे ज़हर का भी. कभी प्लास्टिक बनकर यह ज़हर जीवन को दूषित करता है और कभी पर्यावरण को दूषित करके सांसों को ज़हरीला बनाता है. एक ज़हर और भी है, जिसके प्रति जागरूक होना हमारे अस्तित्व की शर्त बन गया है. अवैज्ञानिक सोच का ज़हर. इसके चलते मनुष्य न तो अपनी उपलब्धियों का उचित लाभ उठा पाता है और न ही उस सबसे बच पाता है जो जीवन को आगे ले जाने के बजाय पीछे धकेलता है. आस्था और विवेक को आमने-सामने खड़ा करके हम उन अवसरों को भी अनदेखा कर रहे हैं जो वैज्ञानिक प्रगति ने हमारे लिए प्रस्तुत किये हैं. हम यह भी नहीं समझना चाहते कि यह अवैज्ञानिक सोच कुल मिलाकर आत्महंता है.

 

कुलपति उवाच

अपना धर्म
के. एम. मुनशी

शब्द-यात्रा

‘आराम’ किस भाषा के नसीब में?
आनंद गहलोत

पहली सीढ़ी

…कमरे में कुछ भी नहीं
दलाई लामा

आवरण-कथा

सम्पादकीय
अवैज्ञानिकता का बढ़ता हुआ कचरा

प्रियदर्शन
हे भगवान प्लास्टिक!
सुसान फ्रिंकेल
उजालों का प्रेम बांटने वाला अंधेरा
सुरेंद्र बांसल
इस विनाश को हम स्वयं न्योता दे रहे हैं
रामचंद्र मिश्र
वैज्ञानिक सोच के पक्ष में
जवाहरलाल नेहरू
संसाधन समाज के हैं
मनसुख
सभ्यता का कचरा
राजेंद्र माथुर
हाहाकार की हकीकत
प्रभु जोशी
सिर्फ फंतासी नहीं हैं विज्ञानकथाएं
शैलेंद्र चौहान

धारावाहिक आत्मकथा

सीधी चढ़ान (तेरहवीं किस्त)
कनैयालाल माणिकलाल मुनशी

आलेख

साहित्य समय का अतिक्रमण करता है
डॉ. आनंदप्रकाश दीक्षित
मृत्यु का तर्पण
काका कालेलकर
रेणु को जानने-समझने का आईना
भारत यायावर
जब न हम तन में रहेंगे…
परितोष शर्मा
मैंने सार्वकालिक किताबें नहीं लिखीं
जॉर्ज ऑरवेल
‘तेंदुआ गुर्राता है, तुम मशाल जलाओ’
अच्युतानंद मिश्र
पश्चिम बंगाल का राज्यवृक्ष : सप्तपर्ण
डॉ. परशुराम शुक्ल
धर्म का मतलब
विवेकानंद
नैतिक मूल्य मनुष्यता की पहचान हैं
सोनी वार्ष्णेय
क्रिकेट के जन्म की लोककथा
कांतिकुमार जैन
सफलताओं का वर्ष
सुरेंद्रलाल जी. मेहता
किताबें

कहानी

उड़ान
मो यान
अच्छा लग रहा है
तेज प्रकाश
प्रभु का संरक्षण
रेनू सैनी

कविता

पूछो उनसे मेरे देश….
रणजीत
दो नवगीत
डॉ. हरीश निगम
गज़ल
विजय ‘अरुण’

समाचार

भवन समाचार
संस्कृति समाचार

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